मगध राज्य का उत्कर्ष
भारत का इतिहास
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी
हर्यक वंश
बिम्बिसार / ई0पू0 545 से ई0पू0 493 तक /-
बिम्बिसार के पिता ने इसे अपना राज्य दिया था।
डाॅ0 भण्डारकर:- बिम्बिसार वज्जि सेनापति था, उसने वज्जियों को हरा कर स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
महावंश:- पिता बोधिस का उत्तराधिकारी बना।
पुराण:- पिता का नाम हेमजित क्षेत्रीजा था।
तिब्बती ग्रंथ:- पिता का नाम महापद्म था।
टर्नर:- पिता का नाम भट्टिय था।
वैवाहिक संबंध:-
मान्यता है कि बिम्बिसार ने मगध को शक्ति सम्पन्न बनाने के लिए 500 विवाह किए। बिम्बिसार ने राज्य विस्तार, विजय की अपेक्षा विवाह से किया।
1. कोशल राज महाकौशल की पुत्री कोशल देवी से विवाह कर दहेज में काशी प्राप्त किया।
2. वैशाली के लिच्छिवि नरेश चेटक की पुत्री चेलना से विवाह कर वैशाली से मित्रता की।
3. तीसरा प्रमुख विवाह संबंध विदेह राज की पुत्री वासवी से किया।
4. चतुर्थ विवाह मध्य पंजाब के भद्र शासक की पुत्री क्षेमा से किया।
मैत्री संबंध:-
अवन्ति नरेश प्रद्योत की बीमारी पर अपना राज वैद्य जीवक को पाण्डु रोग की औषधि करने हेतु भेजा। गांधार नरेश पुष्कर सारिन तथा रोरूक /सिंध/ राज रूद्रायन भी इसके मित्र थे।
साम्राज्य विस्तार:-
श्रेणिक या बिम्बिसार की एक मात्र विजय अंग विजय थी, जिसमें उसने राजा ब्रम्हदत्त को परास्त किया था। मगध की राजधानी कुशाग्रपुर /गिरिव्रज/ से हटा कर राजगृह स्थापित की ताकि वज्जि संघ से सुरक्षा हो सके। किन्तु चेलना से विवाह ने स्वयमेव सुरक्षा बना दी। फाह्यान के अनुसार राजगृह की राजधानी अजातशत्रु ने बनाई थी।
शासन व्यवस्था:-
महावग्ग के अनुसार श्रेणिक के राज्य में 80000 ग्राम थे तथा ग्राम प्रशासन, ग्राम सभा के पास था। अधिकारी निम्नलिखित थे:-
उपराजा:- अजातशत्रु चम्पा का उपराजा था।
माण्डलिक राजा:-
सर्वार्थक महापात्र:- प्रधानमंत्री
सेनापति:-
व्यावहारिक:-
ग्राम भोजक:-
इन अधिकारियों के तीन वर्ग थे। 1. शासक / सम्ब्बत्यक/ 2. व्यावहारिक /न्याय/ 3. सेनानायक
ü न्याय व्यवस्था कठोर थी।
ü प्रमुख वास्तुकार महागोविंद नामक व्यक्ति था।
ü आयुर्वेद की कौमार भृत्य शाखा का विशेषज्ञ ‘‘ जीवक ’’ नामक व्यक्ति था।
धर्म:-
ü बिम्बिसार ने वेलुवन बौद्ध संघ को दान में दिया। /विनय पिटक के अनुसार/
ü सोन दण्ड नामक ब्राम्हण को चम्पा से प्राप्त आय दान में दी। /दीघ निकाय के अनुसार/
मृत्यु:-
पुत्र कुणिक / अजातशत्रु / के हाथों मारा गया।
अजातशत्रु / ई0पू0 493 से ई0पू 462 /:-
माता:- 1. कोशल देवी / संयुत्त निकाय / मान्य 2. जैन साहित्य के अनुसार चेलना इसकी माता थी।
भाई:- अभय, शीलवंत तथा कोण्डवज्ज ने भिक्षु धर्म अपना लिया था। चचेरे भाई देवदत्त के उकसाने पर पिता की बंदीगृह में हत्या कर दी।
साम्राज्य विस्तार:-
कोशल:- पति शोक में कोशल देवी की मृत्यु हो जाने पर प्रसेनजित ने काशी का राज्य वापस मांगा अतः अजातशत्रु ने युद्ध छेड़ दिया। यह अजातशत्रु का प्रथम युद्ध था जिसमें अजातशत्रु बंदी बना लिया गया किन्तु एक संधि के द्वारा प्रसेनजित ने अजातशत्रु को काशी तथा अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह इसके साथ कर दिया।
वैशाली:- लिच्छिवि गणराज्य की विजय अजातशत्रु की महान विजय थी। इस युद्ध के अनेक कारण बताए गए हैं -
1. जैन ग्रंथों के अनुसार बिम्बिसार को चेलना से दो पुत्र थे 1. हल्ल 2. बेहल्ल। बिम्बिसार ने प्रसिद्ध हाथी ‘ सेचनक ’ तथा बहुमूल्य मुक्ता माला दी थी जिसे अजातशत्रु द्वारा मांगे जाने पर दोनों भाईयों ने नाना चेटक के पास शरण ली अतः कुणिक ने वैशाली पर आक्रमण कर दिया।
2. मगध तथा वज्जि संघ के मध्य गंगा नदी के बंदरगाह के समीप स्थित एक खान के बंटवारे के प्रश्न पर।
3. गंगा नदी पर अधिकार के प्रश्न पर।
4. रानी पद्मावती के उकसावे पर।
शक्तिशाली तथा संगठित वज्जि को जीतने के लिए अजातशत्रु ने निम्न तैयारियां कीं -
1. वैशाली के सामने गंगा तट पर विशाल दुर्ग बनवाया जिसे ‘‘ पाटलिग्राम ’’ कहा गया।
2. वज्जि संघ की एकता भंग करने मंत्री वस्सकार को भेजा जो अपने कार्य में सफल रहा।
3. दो नवीन शस्त्रों का आविष्कार किया -1. रथ मूसल 2. महाशिला कण्टक
अंततः सोलह वर्षीय / ई0पू0 484 से ई0पू0 468/ संघर्ष में अजातशत्रु सफल हुआ।
ü अजातशत्रु को अवन्ति राज प्रद्योत के भय से राजगृह का दुर्गीकरण करवाना पड़ा।
अजातशत्रु का धर्म:-
1. महापरिनिर्वाण के उपरांत बुद्ध के अवशेष पर राजगृह में स्तूप निर्माण करवाया।
2. प्रथम बौद्ध संगीति आयोजित की तथा वैभार की पहाड़ी पर गुफा में सभा भवन बनवाया।
3. दूसरी सदी ई0पू0 के भरहुत लेख से अजातशत्रु तथा बुद्ध की भेंट का ज्ञान होता है।
मृत्यु:- पुत्र के हाथों मारा गया।
अजातशत्रु के उत्तराधिकारी:-
दर्षक /ई0पू0 467 से ई0पू0 443/:-
यह अजातशत्रु का पुत्र था। इसका अजातशत्रु के उत्तराधिकारी के रूप में पुराण तथा स्वप्नवासवदत्तम् में उल्लेख मिलता है। डाॅ0 भण्डारकर इसका साम्य ‘‘ नाग दासक ’’ से करते हैं।
उदायी:- जैन एवं बौद्ध मतानुसार अजातशत्रु का उत्तराधिकारी उदयन/उदाई/उदयभद्र ही था। जिसने सान तथा गंगा के संगम पर नवीन राजधानी पाटलिपुत्र /कुसुमपुर/ स्थापित की। उदायी ने अपने पड़ौसी राजा की हत्या कर दी अतः वहां के राजकुमार ने अवन्ति में शरण ली तथा जैन साधु के वेश में पाटलिपुत्र जा कर सोते हुए उदायी की हत्या कर दी।
उदायी जैन मतावलम्बी था।
आगे हर्यक वंश के उत्तराधिकार क्रम में मतभेद हैं:-
पुराण:- उदायी के बाद नन्दिवर्धन तत्पश्चास्त महानंदिन
दीपवंष - महावंश:- उदायी के बाद अनिरूद्ध फिर मुण्ड इसके बाद नाग दासक ये तीनों ही पितृ हन्ता थे।
दिव्यावदान:- उदायी के बाद मुण्ड तथा काकवर्ण
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
- बुद्ध - बिम्बिसार भेंट के अवसर पर राजगृह का वेलुवन बौद्ध संध को दान दिया।
- अजातशत्रु ने देवदत्त के उकसावे पर पिता की हत्या की।
- पाटलिग्राम दुर्ग का निर्माता अजातशत्रु था।
- ब्रहद्रथ वंश के अंतिम राजा रिपुन्जय को उसके मंत्री पलिक ने हत्या कर वंश का अंत किया।
- अवंति राजा चण्ड प्रद्योत को पुलिक का पुत्र कहा जाता है।
शिशुनाग वंश
शिशुनाग /इ्र्र0पू0 412 से ई0पू0 394 /:-
पिता:- वैशाली का लिच्छिवि सरदार /महावंश/
माता:- वैशाली की वैश्या /महावंश/
हर्यक वंष के अंतिम दुर्बल शासक को पदच्युत कर प्रजा की सहमति से शिशुनाग शासक बना। प्रारंभ में यह हर्याकों का मंत्री था। तथा गिरिव्रज में रहता था। शासक बनने के बाद अपनी राजधानी राजगृह को ही बनाई। वैशाली को राज्य की दूसरी राजधानी के रूप में विकसित किया जिसके कारण राजगृह की प्रतिष्ठा कमजोर पड़ती गई।
अवन्ति से युद्ध:- प्रद्योत वंष के अवन्ति राजा को भी मगध में मिलाया तथा पुत्र को काशी का शासक बनाया।
कालाशोक अथवा काकवर्ण / ई0पू0 394 से ई0पू0366/:-
ü इसने पाटलिपुत्र को पुनः मगध की राजधानी बनाया।
ü इसने द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन किया।
ü बाण के हर्ष चरित में लिखा है कि इसकी मृत्यु गले में छंरा घोंप कर हुई थी। संभवतः हत्यारा महापद्म नंद था।
ü कर्टियस के अनुसार महापद्म नंद कालाशोक के दस पुत्रों के संरक्षक के तौर पर शासन करता रहा अंततः उसने नंद वंश की स्थापना की।
नंद वंश / ई0पू0 344 से ई0पू0 322/:-
महापद्म उग्रसेन /366 ई0पू0 से /:-
ऽ हर्ष चरित के अनुसार यह काकवर्ण का हत्यारा है।
ऽ कर्टियस के अनुसार यह रूपवान था तथा यूनानी इसे अग्रमीज या औगसैन संबोधन देते है।
ऽ पुराणों में इसे शूद्रागर्भोद्भव कहा है।
ऽ भारतीय इतिहास के साम्राज्य युग का निर्माता था। ‘‘ सर्वक्षत्रांतक ’’ ‘‘ द्वितीय परशुराम ’’ तथा ‘‘ अनुलंघित शासक ’’ कहा गया है। इसने कलिंग को भी जीत लिया था।
ऽ पुराणों के अनुसार इसके आठ पुत्रों / बौद्ध ग्रंथों में भाई कहा गया है/ ने 322 इ्र्र0पू0 तक राज्य किया तथा अन्तिम शासक धननंद / सिकंदर का समकालीन/ को हटा कर चाणक्य नें मौर्य वंष की स्थापना में योग दिया।