आज इस आर्टिकल में हम अरबों की सिंध विजय पर करने वाले है कि किस तरह अरबों का भारत पर आक्रमण हुआ और अरबों से भारत के संबंध कब से है ? अरबों का भारत पर आक्रमण करने के क्या कारण थे? अरबों को कितनी बार हार का सामना करना पड़ा और कैसे उन्हें सिंध में विजय हासिल हुई? और अरबों के आक्रमण के क्या प्रभाव थे और इस आर्टिकल से संबंधित कुछ स्मरणीय तथ्य भी आपको पढ़ने को मिलेंगे।
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अरबों की सिंध विजय
भारत तथा अरब के चिरकाल से व्यापारिक संबंध थे। अरबी सातवीं सदी में समुद्री मार्ग से व्यापारिक रूप में भारत आए। लगभग नौवीं सदी तक अरबी भाषा पश्चिम भारत /गुजरात/ में बोल चाल की भाषा बन गई। ईराक के गर्वनर अल हज्जाज की दृष्टि भारत के धन पर थी तभी उसे भारत पर हमला करने का तात्कालिक कारण भी मिल गया। इसमें सिंहल नरेश ने एक जहाज में हज्जाज के पास स्त्रियों को भेजा जो सिंध के देवल बंदरगाह पर समुद्री डाकुओं द्वारा लूट लीं। तब हज्जाज ने सिंध नरेश दाहिर से उन स्त्रियों को मुक्त करने को कहा किन्तु दाहिर द्वारा असमर्थता व्यक्त करने पर हज्जाज क्रुद्ध हो गया। तथा हमले की तैयारी शुरू कर दी। खलीफा द्वारा स्वीकृति मिल जाने पर हज्जाज ने उबैदुल्ला को देबल विजय करने भेजा, जो कि मारा गया। तब दूसरा अभियान समुद्री मार्ग से बुदैल के नेतृत्व में भेजा किन्तु मुहम्मद इब्न हारून की सहायता के बावजूद इसे दाहिर के बेटे जयसिंह ने हरा कर मार डाला। अतः अब हज्जाज ने अपने भतीजे और दामाद मुहम्मद बिन कासिम को भेजा। जो कि बौद्ध भिक्षुओं द्वारा सहायता पाकर देबल, निरून तथा सिविस्तान को 712 ई0 में जीतने में सफल हुआ। रावड़ दुर्ग के युद्ध में राजा दाहिर मारा गया। तब उसकी विधवा रानी ने दुर्ग में मोर्चा संभाला किन्तु आसन्न पराजय को देखते हुए रानी ने एतिहासिक जौहर कर प्राण गंवाए। मुहम्मद ने जल प्रदाय रोक कर मुल्तान जीत लिया। 714 ई0 को हज्जाज की मृत्यु हो गई। दाहिर दोनों बेटियां मुहम्मद बिन कासिम की मौत का कारण बनीं। 715 ई0 में खलीफा भी चल बसे।नए खलीफा सुलेमान ने हज्जाज समर्थकों को चुन चुन कर मरवा डाला।
अरब आक्रमण का प्रभाव :-
मंसूर /753 ई0 से 774 ई0/ के समय अरबी अपने साथ ब्रम्हगुप्त की पुस्तक ब्रम्हसिद्धांत व खण्ड खाद्य अपने साथ ले गए। जिसका अरबी अनुवाद अलफाजरी ने किया। चचनामा के आधार पर अलबरूनी ने कहा है कि पंचतंत्र का भी अरबी भाषा में अनुवाद हुआ। सूफी मत पर बौद्ध प्रभाव पड़ा। राजा दाहिर ‘‘चच’’ का बेटा था। अरबों का सबसे भयंकर आक्रमण 725 ई0 को हुआ तब उत्तर भारत की रक्षा गुर्जर प्रतिहार शासक ने की। तथा दक्षिण के द्वार की रक्षा बादामी के चालुक्य के उपराजा अवनिजनाश्रय पुलकेशि राज ने की। जिसे उसके राजा ने दक्षिणापथ का लौह स्तम्भ तथा अजेय विजेता की उपाधि दी।
स्मरणीय तथ्य :-
- खलीफाओं की धर्म और साम्राज्य विस्तार की लालसा ने अरब और भारत के व्यापारिक संबंध न रहने दिए। खलीफा उमर के समय 636 ई0 में अरबों का प्रथम आक्रमण समुद्री मार्ग से थाना/मुंबई/ पर हुआ। जो विफल रहा। परंतु अंततः आठवीं सदी के प्रारंभ में मकरान जीतने के बाद ही अरबों की सिंध विजय का मार्ग प्रशस्त हो सका।
- यशोधर्मन की मंदसौर प्रशस्ति का लेखक वासुल था।
- हूण नरेश मिहिरकुल बौद्ध धर्म से घृणा, मूर्ति भंजक तथा असभ्य था।