ब्रिटिश भारत के प्रमुख सुधार अधिनियम | Major Reform Acts of British India in hindi

मॉडर्न इंडियन हिस्ट्री की कड़ी में आज के इस आर्टिकल में हमने निम्न बातों को शामिल किया है - भारत के प्रमुख सुधार अधिनियम, ब्रिटिश कालीन अकाल नीति, भारतीय समाचार पत्रों का इतिहास, ब्रिटिश भारत में शैक्षणिक सुधार। 
ब्रिटिश भारत के प्रमुख सुधार अधिनियम | Major Reform Acts of British India in hindi

भारत के प्रमुख सुधार अधिनियम


सती प्रथा निषेध अधिनियम :- 4 दिसम्बर 1829 ई0 को राजा राम मोहन राय के प्रयासों से विलियम बैण्टिक ने राधाकान्त देव जैसे सनातन कट्टरपंथी हिंदु के विरोध के बावजूद विधवाओं को जिन्दा जलाया जाना अपराध घोषित कर दिया। सव्रप्रथम इसे 1829 ई0 को बंगाल प्रेसीडेंसी में लागू किया गया फिर 1 अर्पल 1830 इ्र0 से बंबई तथा मद्रास प्रेसिडेंसी में भी लागू किया गया।

ब्रिटिश शासन के पूर्व भी इसे बंद करने अकबर एवं सिख गुरू अमर दास द्वारा प्रयास किया गया। यूरोपियों में सर्वप्रथम पुर्तगाल वायसराय अल्बुकर्क ने सन् 1510 ई0 में गोवा में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया। मान्यता है कि भारत में यह परम्परा शकों के द्वारा लाइ्र्र गई थी। सती प्रथा के उद्देश्य का वर्णन सोलहवीं सदी में ‘‘रघुनंदन’’ द्वारा हिंदु नियमावलि में किया गया है।

बाल हत्या निषेध अधिनियम :- यह प्रथा राजपूतों में सर्वाधिक प्रचलित थी। इनके अलावा गुजराती एवं राट कबीलों के मुसलमान भी इससे ग्रस्त थे। इस बाल हत्या का पता सनृ 1789 ई0 में बनारस में जोनाथन डंकन ने लगाया। सिखों की बेदी जाति में इस प्रथा को अपनाने का आदेश गुरूनानक के पौत्र धर्मचंद बेदी ने दिया था।

सर्वप्रथम सन् 1795 ई0 में सर जॉन शोर के द्वारा शिशु हत्या बंगाल में प्रतिबंधित की गई। इसके लिए जोनाथन डंकन का प्रयास भी सराहनीय रहा। सन् 1870 ई0 तक इसमें अन्य सुधार कर पंजीकरण एक्ट द्वारा पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।

दास प्रथा उन्मुलन :- भारत में प्राचीन काल से प्रचलित दास प्रथा का प्रचलन भारत में यूरोपीय जातियों के आने से और बढ़ गया। सर्वप्रथम सन् 1789 ई0 में भारत से दासों का व्यापार ( निर्यात ) पर प्रतिबंध लगाया गया। सन् 1833 ई0 के चार्टस एक्ट से भारत के ब्रिटिश अधीन राज्यों में दास प्रथा बंद कर दी गई तथा सन् 1843 ई0 में लार्ड एलनबरो ने सम्पूर्ण भारत से दास प्रथा को प्रतिबंधित घोषित कर दिया।

विधवा पुर्नविवाह एक्ट :- कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के आचार्य ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा पुर्नविवाह को वेदोक्त सिद्ध कर एक हजार लोगों का हस्ताक्षरित पत्र लार्ड डलहौजी को भेजा अतः 26 जुलाई 1856 ई0 में लार्ड कैनिंग के द्वारा हिन्दु विधवा पुर्नविवाह एक्ट पारित किया। इस कार्य में डी0 के0 कर्वे तथा वीरेश लिंगम पन्टुलु ने विशेष सहयोग लिया। प्रो0 कर्वे ने तो स्वयं एक विधवा ब्राम्हणी से विवाह भी किया।

बाल विवाह प्रथा उन्मूलन :- 1 अप्रैल 1930 ई0 से पूर्णतः लागू हुआ।

सिविल मैरिज एक्ट ( 1872 ई0 ) :- यह एक्ट ब्रम्ह समाजी केशव चंद्र सेन के प्रयत्नों से लागू हुआ जिसे ब्रम्ह मैरिज एक्ट भी कहा गया। इससे बाल विवाह प्रथा पर प्रतिबंध लग गया। इसमें बालक की आयु 18 वर्ष तथा बालिका की आयु 12 वर्ष निर्धारित की गई। परन्तु यह स्वयं सेन के द्वारा तोड़ दिया गया नियम बन कर रह गया।

एज ऑफ कन्सेण्ट एक्ट ( 1891 ई0 ) :- बी0 एम0 मालाबारी ( पारसी समाज सुधारक ) के प्रयासों से लार्ड लैंसडाउन ने 12 वर्ष से कम आयु की कन्या का विवाह प्रतिबंधित कर दिया। भारतीय समाज में विदेशी हस्तक्षेप मानते हुए लोकमान्य तिलक ने इसका विरोध किया था।

शारदा विवाह एक्ट ( 1930 इ्र0 ) :-
इसके द्वारा वर की आयु 18 तथा वधु की आयु 14 वर्ष निश्चित की गई। इसमें रमाबाई ने भी अपना योगदान दिया।

लॉटरी निषेध एक्ट :- लार्ड एलनबरो ने स्टेट्स लॉटरी प्रतिबंधित की।

नरबलि निषेध एक्ट :- इसे शाक्त सम्प्रदाय की देन माना जाता है जो मुख्यतः उड़ीसा की खोंड जनजाति में प्रचलित थी। इसे लार्ड होर्डिंग द्वारा प्रतिबंधित किया गया। सनृ 1854 ई0 तक यह प्रथा पूर्णतः निषिद्ध कर दी गई।

जातीय वैकल्प निराकरण एक्ट ( 1854 ई0 ) :- धर्म परिवर्तित व्यक्ति को उसकी संपत्ति का अधिकार ( पैतृक संपत्ति ) बना रहेगा। इस एक्ट को पारित कर लार्ड डलहौजी ने धर्म परिवर्तन को प्रोत्साहन दिया।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

- अगस्त 1802 ई0 में बच्चों के शव गंगा या समुद्र में फेंका जाना प्रतिबंधित किया गया।

- सन् 1937 ई0 से स्त्री को सम्पत्ति का अधिकार प्रदान किया गया।

- रानाडे ने महाराष्ट्र में विधवा पुर्नविवाह संस्था की स्थापना की।

- सन् 1870 ई0 के एक्ट द्वारा जन्म का पंजीकरण नगरपालिकाओं में कराना अनिवार्य किया गया।

ब्रिटिश कालीन अकाल नीति


बंगाल में भीषण अकाल ( सन् 1769 - 70 ई0 ) :- इस अकाल के कारण त्रस्त हो कर सन् 1770 इ्र0 में सन्यासी विद्रोह हुआ जिसका प्रतिनिधित्व देवी चौधरानी ने किया।

दिल्ली - आगरा के मध्य अकाल ( 1860 - 61 ई0 ) :- अकाल के कारणों की जाँच हेतु कर्नल स्मिथ जाँच कमेटी बना कर पहली बार सरकार के द्वारा अकाल राहत कार्य शुरू किया गया।

उड़ीसा अकाल ( 1866 ई0 ) :- इसमें अकाल राहत कार्य का पूर्ण उत्तरदायित्व स्वयंसेवी संस्थाओं को दे दिया गया किन्तु उनके असफल रहने पर सर जॉर्ज केम्पवेल समिति गठित कर स्वयं सेवी संस्थाओं को उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया गया।

उन्नीसवीं सदी का विकट अकाल ( 1876 - 78 ई0 ) :- इसका प्रकोप मद्रास, बंबई उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में अति व्यापक स्तर पर था अतः न्यायाधीश स्ट्रैची आयोग की स्थापना की गई। इसके अंतर्गत :-

- पहली बार अकाल कोष की स्थापना की गई।

- सन् 1833 ई0 की अकाल संहिता के आधार पर प्रांतीय अकाल संहिता बनाइ्र गई।

स्ट्रेची आयोग की सिफारिशें :-

- भूख से प्रभावित लोगों को काम एवं मजदूरी मिलती रहे।

- असहाय लोगों की भोजन व्यवस्था सरकार की जिम्मेदारी है।

- प्रभावित क्षेत्रों में समुचित अन्न भण्डारण हो।

- भूमि कर व अन्य किरायों में छूट मिले।

- टकाल सहायता का व्यय प्रांतीय सरकारें वहन करें। यद्यपि केन्द्र सहायता दे सकता है।

- दुधारू पशुओं को चारागाह उपलब्ध हो।

सन् 1896 - 97 के अकाल :-

सर जेम्स लॉयल अकाल समिति :- इसने स्ट्रची आयोग की सिफारिशों को थेड़े परिवर्तन के साथ लागू किया।

सन् 1899 - 1900 ई0 का अकाल :-

मैकडोनल आयोग की स्थापना और सिफारिशें :-

- प्रभावित क्षेत्र में अकाल आयुक्त की नियुक्ति का सुझाव।

- उचित परिवहन व्यवस्था , कृषक बैंकों , सिंचाई एवं कृषि सुधार पर बल दिया गया।

भारतीय समाचार पत्रों का इतिहास


भारतीय समाचार पत्रों का इतिहास यूरापीयों के आगमन से प्रारम्भ होता है। भारत में पहली बार प्रिन्टिंग प्रेस पुर्तगालों द्वारा खोला गया। गोवा के पादरियों ने सन् 1557 ई0 में पहली पुस्तक छापी।

ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा सन् 1684 ई0 में बंबई में प्रिन्टिंग प्रेस लगाया गया। किन्तु सो वर्षों तक समाचार पत्रों का कोई पता नहीं था। सर्वप्रथम 1776 ई0 को विलियम वोल्ट्स ने नौकरी से निकाले जाने पर कम्पनी के अपकर्मों को पत्रों में निकालने की धमकी दी। वस्तुतः भारत में समाचार पत्रों का श्रेय ईस्ट इंडिया कम्पनी के असंतुष्ट कर्मचारियों को ही जाता है।

प्रथम समाचार पत्र : बंगाल गजट ( सन् 1780 ई0 ) :- 

भारत में सर्वप्रथम समाचार पत्र बंगाल गजट था जिसे कलकत्ता जनरल एडवायजर भी कहा गया। इसके प्रकाशन का श्रेय भारतीय समाचार पत्रों के जनक माने जाने वाले जेम्स ऑगस्टस हिक्की को जाता है। परन्तु गर्वनर जनरल और जज के खिलाफ आलोचना करने पर हिक्की को कैद करके प्रेस बंद करा दिया गया था।

कार्नवालिस एवं ड्एन :- इंडियन वर्ल्ड के सम्पादक मि0 ड्एन की पत्र सामग्री से रूष्ट हो कर कार्नवालिस ने उसे देश निकाला दे दिया था।

सर जॉन श्योर एवं प्रेस :- सन् 1796 ई0 में द टेलीग्राफ के सम्पादक मेकेनली ने कम्पनी की आलोचना की तथा सन् 1796 ई0 में ही कलकत्ता गजट के सम्पादकों द्वारा डाइरेक्टरों एवं फ्रेंच गणतंत्र के बीच हुए पत्र व्यवहार को प्रकाशित करने पर जॉन श्योर द्वारा निंदा की गई।

द सेंसरशिप ऑफ प्रेस एक्ट ( 1799 ई0 ) :- लाड्र वेलेजली ने इसे पारित करवाया इसके अनुसार पत्रों के सम्पादक, मुद्रक एवं स्वामी का नाम स्पष्ट रूप से प्रकाषित करने को कहा गया। सन् 1807 ई0 में यह एक्ट पत्रिकाओं , पम्पलेट एवं पुस्तकों पर भी लागू हो गया। वेलेजली ने बंगाल किरकास के सम्पादक मेकेलीन को देश निकाला दिया।

सन् 1818 ई0 में लार्ड्र हेस्टिंग्जद्वारा 1799 इ्र0 के प्रेस एक्ट में से ‘प्री - सेंसरशिप’ का प्रावधान हटा दिया तथा सेंसर का पद समाप्त कर दिया। अतः मि0 बकिंघम ने पत्र कलकत्ता जनरल में जजों की आलोचना की तो निष्कासन किया गया।

टॉमस मुनरो की सिफारिशें :- सन् 1818 ई0 में लार्ड हेस्टिंग्ज द्वारा मुनरो को पत्रों की जाँच हेतु नियुक्त किया।अतः मुनरो ने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता को कम्पनी के लिए खतरा माना। अतः इसकी अनुशंसा पर सन् 1823 ई0 का प्रेस एक्ट लाया गया।

द लायसेंंसग रेग्यूलेशन ऑफ 1823 ई0 :- इसके अनुसार

- प्रिंटिंग प्रेस रखने लायसेंस अनिवार्य।

- लाइसेंस न होने पर 400 रू0 जुर्माने के साथ प्रेस जब्त।

- गर्वनर जनरल लाइसेंस देने या सद्द करने के लिए स्वतंत्र होगा।

इस नियम का राजा राम मोहन राय एवं द्वारकानाथ टैगोर द्वारा विरोध किया गया क्योंकि ‘‘मिरातुल अखबार’’ को बन्द करना पड़ा था।

समाचार पत्रों की स्वतंत्रता (1835 ई0 ):- विलियम बैंटिक पत्रों को असंतोष के खिलाफ सेफ्टी वॉल्व मानता था अतः वह पत्रों का समर्थक था। किन्तु पत्रों की स्वतंत्रता का श्रेय ‘चार्ल्स मैटकॉफ’ को जाता है। लार्ड मैकाले ने पत्रों की स्वतंत्रता हेतु अपना पूरा सहयोग दिया। अब भारतीय पत्र इंग्लैण्ड के पत्रों के समान हो गए। यह नियम सन् 1856 ई0 तक चला।

1857 की क्रांति के कारण समाचार पत्रों पर पुनः प्रतिबंध लगा दिया गया परन्तु 1860 ई0 को पाबंदी हटा ली गईं।

रजिस्ट्रशन एक्ट ऑफ 1867 ई0 :- मैटकॉफ द्वारा सन् 1835 ई0 में बनाए एक्ट को सन् 1867 ई0 में रद्द कर दिया गया। यह नियम कुछ संशोधनों के साथ वर्तमान में भी लागू है।

सन् 1869 - 70 ई0 में तीव्र वहाबी आंदोलन के कारण राजद्रोह फैलाने वाले लेखों पर दण्डनीय अपराध जारी किया।

द वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट ( 1878 ई0 ) :- आयरलैण्ड के दमन एक्ट, 1870 ई0 की शैली पर लाड्र लिटन द्वारा भारतीय भाषा के पत्रों को प्रतिबंधित करने एक्ट पारित किया। जिसे गेजिंग एक्ट अर्थात् मुंह बंद करने वाला नियम भी कहा गया। आंग्ल भाषी पत्र इस प्रतिबंध से मुक्त थे। लिटन द्वारा यह एक्ट ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प? सोम प्रकाष को लक्ष्य कर बनाया गया था।

सन् 1882 ई0 में लार्ड सिपन द्वारा एह एक्ट समाप्त घोषित कर दिया गया।

द न्यूज पेपर एक्ट ( 1908 ई0 ) :- लाड्र कर्जन की औरंगजेबी नीतियों से त्रस्त दलों ने पत्रों में इसकी आलोचना की अतः यह एक्ट लाया गया । जिसके अनुसार :-

- अपराध भड़काने वाले पत्रों के प्रेस जब्त कर लिए जावें।

- स्थानीय सरकार, 1867 एक्ट को रद्द कर सकती है।

- प्रेस जब्त होने पर 15 दिन के अंदर हाई कोर्ट में अपील की व्यवस्था की गई।

ठस एक्ट ने नौ समाचार पत्रों पर मुकदमें एवं सात मुद्रणालय जब्त किए जबकि ‘‘युगांतर’’ ‘‘संध्या’’ एवं ‘‘वंदेमातरम्’’ ने प्रकाशन बंद कर दिया।

इंडिया प्रेस एक्ट , 1910 ई0 :- सन् 1908 ई0 के एक्ट की विफलता पर इसे लाया गया। इसके अनुसार :-

- पत्र प्रकाशकों व मुद्रकों को 500 से 1000 रू0 जमानत मजिस्ट्रेट को देना अनिवार्य कर दिया गया।

- आपत्तिजनक सामग्री को परिभाषित करा गया। अतः तेज बहादुर सप्रु की अध्यक्षता वाली इस समिति की समीक्षा से 1908 एवं 1910 के एक्ट रद्द कर दिए गए।

इंडियन प्रेस इमरजेंसी एक्ट, 1931 ई0 :- गाँधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए उत्प्रेरक का काम कर रहे पत्रों पर 1910 एक्ट के आदेश पुनः लागू कर दिए गए तथा प्रांतीय सरकों को आंदोलन दमन की शक्तियां दे दी गईं।

इसी अधिनियम को विस्तारित करके आपराधिक संशोधन एक्ट, 1932 लाया गया। इसके द्वारा ब्रिटिश सरकार के मित्र विदेशी राज्यों के संबंधों में हस्तक्षेप को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया।

इंडियन स्टेट्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1934 ई0:- इस एक्ट से ब्रिटिश सरकार को भारतीय शासकों या शासन व्यवस्था पर टिप्पणी करने से रोकने का अधिकार मिला।

सन् 1934 ई0 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय पत्रों पर पुनः नियंत्रण स्थापित किया गया। जो 1945 ई0 तक जारी रहा। मार्च 1947 ई0 को प्रेस जाँच कमेटी द्वारा सन् 1931 एवं 1934 ई0 के एक्ट रद्द कर दिए गए।

महत्वपूर्ण जानकारी :-

- बंगाल गजट ( गंगाधर शास्त्री ) अंग्रेजी में प्रकाशित पहला पत्र जो किसी भारतीय द्वारा प्रकाशित किया गया।

- किसी विदेशी द्वारा ( मार्शमेन एण्ड कैरी ) भारतीय भाषा बंगाली में प्रकाशित प्रथम समाचार पत्र सन् 1818 ई0 को कलकत्ता से प्रकाशित समाचार दर्पण था।

- कलकत्ता से प्रकाशित मिरातुल अखबार फारसी में प्रकाशित प्रथम पत्र था जो राय द्वारा 1822 ई0 में निकाला गया।

- हिन्दी का प्रथम समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन जुगल किशोर द्वारा 1826 ई0 को कलकत्ता से किया गया।

- उर्दु का प्रथम पत्र सन् 1831 ई0 को बंबई से पी0 एम0 मोतीवाला द्वारा प्रकाशित जाम-ए-जमशे
द है।

- किसी भारतीय द्वारा प्रकाशित प्रथम अंग्रेजी पत्र हरिश्चंद्र द्वारा 1855 ई0 में प्रकाशित हिन्दु पेट्रियाट कलकत्ता से दैनिक प्रकाशित होता था। इस पत्र के सम्पादक क्रिस्टादास पाल को ‘‘भारतीय पत्रकारिता का राजकुमार’’ कहा जाता है।

- प्रथम मराठी पत्र बंबई से 1832 में प्रकाशित बॉम्बे दर्पण (बाल शास्त्री जाम्बेकर द्वारा )। जाम्बेकर को महाराष्ट्र के बौद्धिक आंदोलन का प्रवर्तक माना जाता है।

- बेनेट कोलमेन द्वारा प्रकाशित बॉम्बे टाइम्स का वर्ततान नाम टाइम्स ऑफ इंडिया है।

- भारत का प्रथम सांध्य समाचार पत्र - मद्रास मेल ( 1868 )

- मध्यप्रदेश का प्रथम समाचार पत्र -

ब्रिटिश भारत में शैक्षणिक सुधार


आधुनिक शिक्षा का प्रारम्भ भारत में यूरोपियों के आगमन से माना जाता है। पुर्तगाली पादरी फ्रांसिस जेवियर ने 1542 ई0 में अनेक स्कूल खोले। सन् 1576 ई0 में गोवा में प्रथम जेयुएट कॉलेज की स्थापना की गई।

सन् 1698 ई0 में भारत की अंग्रेजी बस्तियों में पाठशालाओं की स्थापना कर अंग्रेजी शिक्षा का सूत्रपात किया गया। सन् 1715 ई0 में सेण्ट मेरी चेरिटी स्कूल ( मद्रास ) की स्थापना की।

सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्ज ने 21 फरवरी 1784 ई0 को कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स को पत्र लिख कर शिक्षा जगत की ओर ध्यान आकर्षित कराया। इसी समय ग्राण्ट ने अपने स्मृति पत्र में भारत में अंग्रेजी शिक्षा पर बल देने को कहा। संभवतः मैकाले के पूर्व यह अंग्रेजी 
शिक्षा के समर्थन में पहला मत था। सन् 1781 ई0 में वारेन हेस्टिंग्ज के द्वारा इस्लाम धर्म साहित्य के अध्ययन हेतु कलकत्ता में मदरसा खोला गया। सन् 1791 ई0 में जोनाथन डंकन ने बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना की तथा कम्पनी के सिविल अधिकारियों की सही शिक्षा हेतु बैटिक द्वारा सन् 1800 इ्र0 में फोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता की नींव डाली गई जो सन् 1802 ई0 में डाइरेक्टर्स द्वारा बंद करा दिया गया। मद्रास के गर्वनर सर टॉमस मुनरो द्वारा सर्वप्रथम स्थानीय शिक्षा पद्धति का अध्ययन करवाया गया।

सन् 1813 ई0 के चार्टर एक्ट द्वारा कम्पनी ने पहली बार शिक्षा नीति में हस्तक्षेप करते हुए भारत के ब्रिटिश क्षेत्रों में साहित्यिक सुधार हेतु एक लाख रू0 अनुदान देने को कहा। किन्तु भारत में आंग्ल - प्राच्य भाषा माध्यम विवाद के चलते प्रतिवर्ष यह राशि मात्र जमा ही होती रही। अतः 17 जुलाई 1823 ई0 को सर्वसाधारण शिक्षा समिति ( 
A general committee of public instruction ) की स्थापना कर एकत्रित धनराशि व्यय करने का अधिकार दिया गया। किन्तु शिक्षा के माध्यम का विवाद सन् 1854 तक बना रहा।

सन् 1817 ई0 में अंग्रेजी भाषा में शिक्षा के प्रावधान से कलकत्ता में हिन्दु कॉलेज का विचार रखा गया। कलकत्ता मदरसा ( 1781 ई0 ) एवं बनारस कॉलेज ( 1791 ई0 ) का विरोध करने वाले पाश्चात्य भाषा समर्थक राजा राम मोहन राय ने इस कार्य में डेविड हेयर को अपना समर्थन जारी रखा। जो भविष्य में प्रेसिडेंसी कॉलेज बना।

सन् 1835 ई0 में लार्ड मैकाले को बैण्टिक द्वारा सर्वसाधारण शिक्षा समिति ( 
A general committee of public instruction
 ) का अध्यक्ष बना दिया गया। इस कमेटी के सदस्य एच0 टी0 प्रिंसेप एवं एच0 एच0 विल्सन दोनों ही प्राच्यवादी थे जबकि मैकाले विशुद्ध पाश्चात्य धारा का पोषक था। अतः राम मोहन राय जैसे समर्थकों के सहयोग से बैण्टिक ने 7 मार्च 1835 ई0 को मैकाले के परामर्श स्वीकार कर लिए। इसके द्वारा प्राच्य विद्या को ठोकर मार कर सारा सरकारी ध्यान एवं अनुदान आंग्ल भाषा एवं आंग्ल शिक्षार्थियों हेतु ही मान्य किया गया।

सन् 1835 ई0 में पाश्चात्य ढंग पर कलकत्ता मेडीकल कॉलेज की नींव पड़ी। सन् 1840 ई0 में बंबई में भारतीय शिक्षा समिति को भंग कर ‘‘शिक्षा बोर्ड’’ की स्थापना की गई। सन् 1844 ई0 में लार्ड होर्डिंग की घोषणा ‘‘नौकरी मात्र नवीन शिक्षा प्राप्त करने वाले के लिए ही’’ के बाद इसका प्रभाव बढ़ गया।

सन् 1853 ई0 में थामसन ने देशी भाषाओं में ग्राम शिक्षा योजना का विचार रखा तथा बनारस में कॉलेज खोला।

19 जुलाई 1854 ई0 को शैक्षणिक गतिविधियों के मूल्याँकन के उद्देश्य से गठित चार्ल्स वुड की रिपोर्ट जारी की गई। जिसे वुड्’स डिस्पैच कहा गया। इसे भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत :-

- उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी तथा माध्यमिक स्तर पर अंग्रेजी एवं स्थानीय भाषा का माध्यम हो।

- शिक्षा नीति धार्मिक रूप से तटस्थ हो एवं स्त्री शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जावे।

इसकी घोषणा के आधार पर सन् 1859 ई0 में कलकत्ता , मद्रास और बंबई में विश्वविद्यालय खोले गए।

सन् 1870 ई0 को वित्तीय विकेन्द्रीकरण के बाद शिक्षा भार प्रांतों पर आ गया अतः प्राथमिक 
शिक्षा पिछड़ने लगी। सन् 1882 ई0 में लाहौर में पंजाब यूनिवर्सिटी खोली गई। वुड ने निजी क्षेत्र की शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया।

उन्नीसवीं सदी के अन्त में भारतीयों द्वारा स्वतंत्र शैक्षणिक प्रयोगों में पहली बार तलेगाँव में बिरजारपुरकर के द्वारा राष्ट्रीय स्कूल खोला गया।

सन् 1870 ई0 के बाद भारतीय आई0 सी0 एस0 परीक्षाओं में सफल होने लगे अतः परीक्षा की अधिकतम आयु सीमा कम कर दी गई तथा उच्च 
शिक्षा की उपेक्षा कर प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाने लगा। शिक्षा सुधार हेतु सन् 1878 ई0 में ‘ द जनरल कौंसिल ऑफ एजुकेशन इन इंडिया ’’ की स्थापना कर मुख्यालय लन्दन में बनाया गया।

हण्टर आयोग ( 1882 ई0 ) :- यह प्रथम भारतीय 
शिक्षा आयोग था। जिसे वुड के सुझावों का मूल्यांकन करने गठित किया गया था। इसके अनुसार सन् 1883 ई0 को डब्ल्यु0 डब्ल्यु0 हण्टर ने अपनी रिपोर्ट इस प्रकार दीः-

- उच्च 
शिक्षा पर से सरकारी नियंत्रण हटा लिया जावे।

- प्राथमिक 
शिक्षा पर बगैर स्थानीय सहयोग के विकास वृद्धि की जावे।

- माध्यमिक 
शिक्षा पर स्थानीय दायित्व हो।

- स्त्री 
शिक्षा की अव्यवस्था पर खेद प्रकट किया गया।

सन् 1901 ई0 में 
शिक्षा पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण के उद्देश्य से लार्ड कर्जन ने शिमला में शिक्षा विशेषज्ञों का सम्मेलन बुलाया तथा सन् 1902 ई0 में थॉमस रैले की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय आयोग गठित किया गया। इस आयोग में सैयद हुसैन बिलग्रामी तथा गुरूदास बनर्जी को सदस्य बनाया गया। इस आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर अधिनियम बना दिया गया।

विश्वविद्यालय अधिनियम ख् 1904 ई0 :-


- नए कॉलेज के विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु नियम कठोर ताकि भारतीयों द्वारा स्थापित कॉलेज बंद हो जावें।

शिक्षा नीति का निर्धारण सरकार द्वारा ही गठित किया जाना।

लार्ड कर्जन ने मैकाले की नीति का विरोध करते हुए कहा कि यह देशी भाषाओं के साथ विरूद्ध पक्षपात है। यह एक कूटनीतिक वाक्य है।

इस अधिनियम के बाद प्राथमिक 
शिक्षा को प्रोत्साहित करते हुए सरकारी अनुदान शिक्षा क्षेत्र की विशेषता बन गए।

सन् 1910 ई0 को 
शिक्षा विभाग की स्थापना की गई तथा दस लाख रू0 शैक्षणिक विकास हेतु स्वीकृत किए गए।

सन् 1913 ई0 का संकल्प :-


- प्रत्येक प्रान्त में विश्वविद्यालय की स्थापना।

- आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को निःशुल्क 
शिक्षा का प्रावधान।

गोपाल कृष्ण गोखले ने बड़ौदा रियासत की तर्ज पर सम्पूर्ण भारत में अनिवार्य 
शिक्षा की मांग की। ध्यान रहे कि भारत में सर्वप्रथम सन् 1906 ई0 को बड़ौदा रियासत द्वारा अनिवार्य शिक्षा नीति लागू की गई।

कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग , 1917 ई0 :-

अध्यक्ष :- सर माइकल सेडलर , इस आयोग ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के साथ माध्यमिक एवं स्नातकोत्तर 
शिक्षा पर भी सुझाव दिए। आयोग में दो भारतीय सदस्य भी थे। 1. डॉ0 आशुतोष मुखर्जी 2. डॉ0 जियाउद्दीन अहमद

1. कलकत्ता विश्वविद्यालय पर बंगाल सरकार का नियंत्रण हो।

2. स्त्री 
शिक्षा बोर्ड का सुझाव।

3. इंटरमीडिएट कक्षाओं से विश्वविद्यालय का नियंत्रण हटे।

4. स्नातक पाठ्यक्रम त्रि-वर्षीय हो।

इन सिफारिशों के आधार पर सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश में बोर्ड ऑफ सेकेण्डरी एजुकेशन की स्थापना की गई। सन् 1919 ई0 में शिक्षा अनुदान बंद करके माण्ट-फोर्ट सुधार से शिक्षा विषयों पर नियंत्रण प्रांतों में लोक निर्वाचित मंत्री को दे दिया गया। सन् 1921 ई0 में गुरूदेव टैगोर ने विश्वभारती की स्थापना की।

हार्टोग आयोग, 1929 ई0 :- के सुझाव :-


- माध्यमिक स्तर की मैट्रिक 
शिक्षा में सुधार।

- ग्रामीण छात्रों को महाविद्यालयीन शिक्षा के स्थान पर व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जावे।

- प्रांतों में अनिवार्य 
शिक्षा एक्ट।

सन् 1935 ई0 के अधिनियम से द्वैध शासन खात्मे पर 
शिक्षा नियंत्रण प्रांतीय स्वशासी मंत्रियों के हाथों में हो गया।

सार्जेण्ट योजना, 1944 ई0 :- 6 से 14 वर्ष तक के बालकों को देशव्यापी निःशुल्क एवं अनिवार्य 
शिक्षा देने का निश्चय।

बुनियादी शिक्षा की वर्धा योजना, 1937 ई0 :- 

इसके जनक गाँधीजी हैं जिन्होंने ‘‘हरिजन’’ पत्र में इसको लिखा था। तथा गांधीजी ने 22 और 23 अक्टुबर 1937 ई0 को अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमें निम्न लिखित सुझाव आए :-

- 7 से 14 वर्ष तक निःषुल्क अनिवार्य 
शिक्षा

शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो।

- हस्त उत्पाद कार्य आधारित 
शिक्षा नीति।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

सन् 1847 ई0 में रूड़की यांत्रिकी महाविद्यालय स्थापित किया गया।

प्रथम बालिका स्कूल कलकत्ता में श्रीमती मार्शमेन द्वारा सन् 1801 ई0 में खोला गया।

सन् 1818 - 19 ई0 में लंदन मिशनरी सोसायटी ने विनसुरा में बालिका विद्यालय खोला जिसका नेतृत्व ई0 डी0 बेटन ने किया।

सन् 1824 ई0 में बंबई में बंबई प्रेसिडेंसी का पहला बालिका विद्यालय शुरू हुआ।

सन् 1857 ई0 की क्रांति के बाद 
शिक्षा का स्वरूप धर्म निरपेक्ष हो गया।

भारत में सर्वप्रथम सन् 1906 ई0 में विज्ञान शिक्षण प्रारम्भ हुआ।

सन् 1916 ई0 में महर्षि कर्वे द्वारा स्थापित महिला विश्वविद्यालय, पुणे को सन् 1936 ई0 में बंबई स्थानांतरित किया गया।

सरकारी तौर पर बैथ्यून ने प्रथम गर्ल्स स्कूल, कलकत्ता में 7 मई 1849 ई0 को खोला।

हण्टर आयोग की सिफारिश पर सन् 1887 ई0 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।

सन् 1837 ई0 से फारसी सरकारी भाषा नहीं रही।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति - लार्ड कैनिंग।

सन् 1925 ई0 में अंतरविश्वविद्यालय मण्डल बनाया गया।

सन् 1939 ई0 की प्रौढ़ 
शिक्षा समिति अध्यक्ष डॉ0 सैयद महमूद थे।

शिक्षा के अधोगामी निस्यंदन का संबंध वुड के डिस्पैच से है।

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