Morals that we get from the life of Buddha in Hindi | बुद्ध की शिक्षाएँ त्रिरत्न और अष्टांगिक मार्ग क्या है?


बुद्ध की शिक्षाएँ  त्रिरत्न और अष्टांगिक मार्ग क्या है

गौतम बुद्ध कौन थे ? गौतम बुद्ध की जीवनी


गौतम बुद्ध एक इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय राजकुमार थे। बुद्ध का आत्मज्ञान से पहले नाम सिद्दार्थ था, सिद्धार्थ के पिता का नाम राजा शुद्धोधन और उनकी माँ का नाम महामाया था। सिद्धार्थ का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व हुआ था। सिद्धार्थ जब एक दिन बगीचे में घूमने निकले तो उन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति दिखा जिसने उनके मन को विचलित कर दिया और जब दूसरी बार घूमने निकले तब उन्हें एक बीमार व्यक्ति दिखा और तीसरी बार उन्हें अर्थी दिखी जिससे उनका मन पूरी तरह व्याकुल हो गया और जब चौथी बार भ्रमण पर निकले तो उन्हें एक सन्यासी दिखाई दिया जिसे देखकर उनके मन को बड़ी शांति मिली और संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए एक रात्रि में अपनी पत्नी यशोधरा और बेटे राहुल को छोड़कर आत्मज्ञान की प्राप्ति में निकल पड़े। कई बर्षों की कठोर साधना और तपस्या के बाद उन्हें बिहार के गया में एक पीपल के वृक्ष नीचे आत्मज्ञान प्राप्त हुआ जिसे बोधि वृक्ष कहा गया है और सिद्धार्थ को भगवान् बुद्ध कहा गया।

भगवान् बुद्ध ने अपने जीवन में कई शिक्षाएं दी है जो निम्न प्रकार है | Morals from life of Buddha in Hindi

शील - सर्व पाप से विरति ही 'शील' है

समाधि - शिव में निरंतर निरति 'समाधि' है

प्रज्ञा - इष्ट-अनिष्ट से परे समभाव में रति 'प्रज्ञा' है

त्रिरत्न और अष्टांगिक मार्ग क्या है?


जीवन को आनंदमयी बनाने के लिए बुद्ध ने तीन रास्ते बताये है पहला आष्टांग योग, दूसरा जिन त्रिरत्न और तीसरा आष्टांगिक मार्ग। आष्टांगिक मार्ग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है जो निम्न प्रकार है।

सम्यक विचार - 

यहाँ सम्यक विचार से अर्थ - विचार करने के ऐसे तरीकों से है जिनमे व्यक्ति व्यर्थ के विचार न करके उन विचारों को अपने मस्तिष्क में आने दे जिनसे इस संसार का और स्वयं का कल्याण हो। लोभ, माया से ग्रसित अधिक विचारों को हानिकारक बताया गया है।

सम्यक दृष्टि - 

सम्यक दृष्टि का अर्थ है सभी प्राणियों को एक भाव से देखना कभी लोभ,लालच अपनी नजरों में न लाना। संसार का सुख न देखकर संसार दुःख देखना और उसे दूर करने करना।

सम्यक वाक - 

सम्यक वाणी के अंतर्गत सत्य बोलना और मधुर बोलना। संसार के कल्याणार्थ अपनी वाणी का उपयोग करना ही सम्यक वाणी है।

सम्यक कर्म | सम्यक व्यायाम - 

सम्यक कर्म और व्यायाम का यहाँ अर्थ - संतुलित कर्म करना जिससे जन कल्याण हो और संतुलित व्यायाम करना जिससे शरीर को लाभ हो क्यूंकि अधिक कर्म या व्यायाम भी हानिकारक होता है।

सम्यक जीविका - 

इसमें हमें ऐसी आजीविका अपनाना है जिससे किसी भी प्राणी को नुकसान न पहुंचे। जैसे जानवरों, मदिरा आदि व्यापर न करना जिनसे समाज को और पर्यावरण को नुकसान न हो।

सम्यक संकल्प - 

इसे ऐसे समझ सकते है अच्छे कार्य को करने का संकल्प मात्र होना चाहिए। जीवन में कुछ संकल्प लोक कल्याण के लिए होने चाहिए और स्वयं को उच्च बनाने के सम्यक प्रयास करते रहना चाहिए।

सम्यक स्मृति - 

सम्यक स्मृति का तात्पर्य मन को एकाग्र कर उसमें अच्छी स्मृतियाँ रखना जो जन कल्याण और संसार के समस्त प्राणियों के लिए सुख कारक हो।

सम्यक समाधि - 

ज्ञान की सत्यता साथ के साथ अपने मन को एकाग्र करना अर्थात किसी विषय पर एकाग्र होकर उस विषय की गहराई और सत्यता को पा लेना जिससे उस विषय से सम्बंधित समस्या समाधान आसानी से मिल जाती है। समाधि एक अर्थ - योग के द्वारा शून्य की अवस्था में पहुंचकर अपने शरीर त्याग कर देना।

यहाँ हमने इस आर्टिकल बुद्ध की कुछ ही शिक्षाओं जैसे - शील, समाधि, प्रज्ञा और त्रिरत्न और अष्टांगिक मार्ग क्या है? इनका उल्लेख किया है इनके आलावा भी भगवान् बुद्ध ने अपने जीवन में कई शिक्षाएँ दी। 


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