ब्रिटिश भारत की आर्थिक नीतियाँ ( व्यापार , उद्योग तथा कृषि ) | British Ruler's Economic Policy | British bharat ki arthik nitiyan

भारत में ब्रिटिश शासकों की आर्थिक नीति एवं उसका प्रभाव

मॉडर्न इंडियन हिस्ट्री की कड़ी में आज के इस आर्टिकल में आपको  ब्रिटिश भारत की आर्थिक नीतियाँ  ( व्यापार , उद्योग तथा कृषि ) आदि के विषय में पढ़ने को मिलेगा। 

British Ruler's Economic Policy | British bharat ki arthik nitiyan

ब्रिटिश भारत की आर्थिक नीतियाँ- व्यापार, उद्योग तथा कृषि 


सन् 1600 ई0 से सन् 1757 ई0 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी की मुख्य भूमिका एक व्यापारिक निगम के रूप में थी। वह यूरोपीय माल के बदले कपड़े , मसाले आदि विदेश भिजवाती। इंग्लैण्ड में भारतीय सूती वस्त्र सर्वाधिक लोकप्रिय थे। सन् 1720 ई0 में कानून बना कर छापेदार या रंगे सूती वस्त्रों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। सबसे पहले यह प्रतिबंध इंग्लैण्ड ने लगाया तथा बाद में समस्त यूरोपीय देषों ने इन वस्त्रों को प्रतिबंधित कर दिया।

धीरे - धीरे कालक्रम में परिवर्तन हुआ तथा यूरोपीय दबाव में कम्पनी ने भारत का आर्थिक शोषण शुरू कर दिया। परिणाम स्वरूप भारत , यूरोपीय कारखानों के लिए कच्चा माल उम्पादक मण्डी बन कर रह गया। सन् 1757 ई0 के प्लासी के युद्ध से कम्पनी शक्तिशाली हो गई। और व्यापारिक शोषण का क्रम जारी रहा।

ब्रिटिश आर्थिक नीतियां


- सर्वप्रथम नमक , सुपारी एवं तम्बाकू के व्यापार पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का एकाधिकार रहा।

- कच्चे सूत एवं रेशम पर अधिकार कर भारतीय जुलाहों पर अपना काम लाद दिया।

- भारतीय व्यापार चौपट हो गया। सर जार्ज कॉर्नवैल ने तो सन् 1765 - 84 की कम्पनी की सरकार को तत्कालीन विश्व की सबसे भ्रष्टतम सरकार की संज्ञा दी है।

अठारहवीं सदी की औद्योगिक क्रंति ने मशीनी युग को जन्म दिया अतः भारतीय कुटीर उद्योग ब्रिटिश मशीनों के सामने टिक नहीं पाए। भारत , ब्रिटेन के कारखानों के माल उपभोक्ता एवं कच्चे माल का निर्यातक मात्र बन गया। सन् 1813 ई0 के एक्ट से भारत के व्यापार पर से ईस्ट इंडिया कम्पनी का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया एवं सभी ब्रिटिश उद्योगपतियों के लिए खुला बाजार बनाकर भारत के विदेशी व्यापार को हानि पहुंचाई गई।

भारत में सन् 1833 ई0 के चाटैर एक्ट से ईस्ट इंडिया कम्पनी ने स्वतंत्र व्यपार नीति अपनाई और भारत में निर्यात शुल्क कम कर दिया और ब्रिटेन में आयात शुल्क बढ़ाकर भारतीय तेल से ब्रिटेन में रौशनी की गई। धीरे - धीरे भारतीय माल ब्रिटेन में बंद हो गया।

सन् 1857 ई0 के बाद क्रउन के अधीन भारत का शोषण और बढ़ा क्योंकि अब सम्पूर्ण ब्रिटेन की हित साधना करना थी। अंत तक भारत के लहू को जला कर ब्रिटेन का चूल्हा जलता रहा। चूंकि भारतीय व्यापार नष्ट हो कर मात्र उपभोक्ता बन गया। अतः बेरोजगार कृषि की ओर उन्मुख हुए ताकि कच्चा माल और पेट भरा जा सके।

औद्योगिक श्रमिक वर्ग तथा व्यापार आंदोलन :- भारत में उद्योग धंधों की नींव सन् 1850 ई0 से 1870 ई0 के बीच रखा गई। सन् 1853 ई0 के डलहौजी के रेल्वे मिनट के बाद भारतीय संचार साधनों में मशीनों का प्रयोग होने लगा। कोयला खानों में हजारों श्रमिक आए। सन् 1854 ई0 में बंबई में प्रथम कपड़ा मिल कासवजी दाबोर द्वारा स्थापित की गई। सन् 1854 ई0 में ही कलकत्ता में प्रथम पटसन मिल लगाई गई।

इन सब में श्रमिकों का शोषण होने लगा परन्तु इन भारतीय श्रमिकों की दशा  सुधारने लंकाशायर में कपड़ा कारखाना मालिकों ने अपील की। क्योंकि वे भारतीय उद्योग की प्रतिद्वंद्विता से डरते थे। अतः फैक्ट्री एक्ट लागू किए गए। बंबई के मजदूरों ने तिलक के जेल दण्ड पर छः दिवसीय हड़ताल की अतः भारत में पहली बार 31 अक्टुबर 1920 ई0 को लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में All India Trade Union Congress की स्थापना की गई। सी0 आर0 दास , वी0 वी0 गिरी , सरोजनी नायडू , जवाहर लाल नेहरू , सुभाषचंद्र बोस जैसे नेता इसके अध्यक्ष रहे। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी इसे मान्यता प्रदान कर दी। अपने आरंभिक दिनों मे यह संगठन श्रम नेता एन0 एम0 जोशी के प्रभाव ज्यादा रही।

सन् 1926 - 27 ई0 में All India Trade Union Congress के दो भाग हो गए। 1. जेनेवा एमस्टर्डम धुरी ( सुधारवादी ) 2. मास्को गुट ( क्रांतिवादी )। सन् 1929 ई0 को एन0 एम0 जोशी ने All India Trade Union Federation की स्थापना की। साम्यवादियों ने Communist Trade Union Congress का गठन किया।

- सन् 1929 - 33 ई0 के बीच ‘‘ मेरठ षडयंत्र केस ’’ में 33 श्रमिक नेताओं पर राज द्रोह का मुकदमा चला।

- एन0 एम0 राय ने सरकार समर्थक Indian Federation of Labour  का गठन किया।

- सरदार पटैल ने Indian National Trade Union Congress  बनाई।


आर्थिक शोषण के तीन चरण :-


A. भारतीय कृषि पर प्रभाव 
B. कुटीर उद्योगों की हानि 
C. भारत से धन की निकासी

A. भारतीय कृषि पर प्रभाव :- 


अंग्रेजों ने भू अधिग्रहण की नवीन रीतियों का परिचालन किया। ये पद्धतियां मुख्यतः तीन प्रकार की थीं।

1. स्थाई जमींदारी

2. महालवाड़ी

3. रैयतवाड़ी

1. स्थाई जमींदारी व्यवस्था :- सन् 1772 ई0 में वारेन हेस्टिंग्ज ने ऊँची बोली लगाने वाले को भू राजस्व वसूली का ठेका पांच वर्ष के लिए दिया। परन्तु यह नीति असफल हो गई। सन् 1789 ई0 में लार्ड कार्नवालिस ने स्थाई भू बंदोबस्त की दस वर्षीय नीति लागू की। जिसे 22 मार्च 1793 ई0 को स्थाई कर दिया गया। जो कि कार्नवालिस का स्थाई बंदोबस्त कहलाया। इस स्थाई व्यवस्था का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि ‘‘ सरकार की मांग तो स्थित थी किन्तु जमींदार कृषक से परिवर्तित लगान माँगते। अतः बंगाल टेनेन्सी एक्ट , 1822 ई0 एवं बंगाल रेन्ट एक्ट लाए गए। पर ये एक्ट मात्र आंशिक शांति प्रदान करने वाले ही रहे।

2. महालवाड़ी व्यवस्था :- जमींदारी व्यवस्था में बढ़ते असंतोष के कारण ‘ होल्ट मैंकेंजी ’ के मेमोरेण्डम को स्वीकार करते हुए भूमि कर की इकाई महाल अर्थत् सम्पूर्ण ग्राम या जागीर का एक भाग को बनाया गया। इसमें ग्राम समाज राजस्व के प्रति उत्तरदायी होता था।

- सन् 1801 ई0 में अवध के नवाब से प्राप्त महाल अभ्यर्पित जिलों में लागू।

- रेग्यूलेशन ऑफ 1822 से महाल राजस्व निर्धारण।

- रेग्यूलेशन ऑफ 1833 से प्रथम बार खेतों के मानचित्र एवं पंजियों के प्रयोग से राजस्व निर्धारण किया गया। इसे ‘‘ मार्टिन बर्ड ’’ योजना कहा गया।

3. रेयतवाड़ी व्यवस्था :- इस व्यवस्था के प्रवर्तक कैप्टज रीड एवं सर टॉमस मुनरो थे। सर्वप्रथम यह व्यवस्था टॉमस मुनरो द्वारा मद्रास में 1792 ई0 को लागू की गई। रेयत का अर्थ किसान होता था किन्तु किसान को न्यायालयीन बपील का अधिकार नहीं था। बंबई प्रेसिडेंसी में रैयतवाड़ी प्रथा का श्रेय एलफिंस्टन को जाता है।

B. कुटीर उद्योगों की हानि :- 


मशीनी माल की उत्कृष्टता के समक्ष भारतीय कुटीर उद्योग ठप्प हो गए।


C. भारत से धन की निकासी :-


आर्थिक निकासी के तत्व

1. गृह व्यय - भारत राज्य सचिव से संबद्ध व्यय

अ. कम्पनी भागीदारों को राजस्व भारतीय मुद्रा में देय। ( चार्टर एक्ट 1833 )

ब. युद्ध एवं उत्पादक उद्देश्यों के ऋण की पूर्ति भारतीय राजस्व में।

स. भारत से संबद्ध सभी सैनिक - असैनिक व्यय।

2. विदेशी पूँजी निवेश पर ब्याज

3. बैंक , बीमा एवं शिपिंग कम्पनी ने भारत से करोड़ों कमाए।

महत्वपूर्ण तथ्य :-

- धन निकासी पर निम्नलिखित भारतीयों ने गणना की :

1. दादा भाई नौरोजी

2. जी0 वी0 जोशी

3. डी0 ई0 वाचा

4. आर0 सी0 दत्त

- नौराजी ने धन निर्गम को Evil of the Evils  कहा है।

- नौरोजी ने सन् 1905 ई0 में धन निर्गम पर सुण्डरलैण्ड को पत्र भेजा।


रेल यातायात :-

- सन् 1846 ई0 में लार्ड होर्डिंग द्वारा प्रस्ताव।

- सन् 1831 ई0 को मद्रास में घोड़ा रेल का प्रस्ताव।

- सन् 1834 ई0 को भाप रेल का प्रस्ताव।

- 16 अप्रैल 1853 ई0 को डलहौजी के समय बंबई से थाणे के बीच यातायात हेतु पहली रेल का संचालन शुरू।


डाक तार प्रणाली :-

- सन् 1853 ई0 में कलकत्ता से आगरा पहली तार लाइन प्रारम्भ।

- डलहौजी द्वारा डाक टिकट प्रारंभ।


उद्योग

1. कोयला उद्योग :-

- रानीगंज , कलकत्ता की कोयला खान प्रसिद्ध थी।


2. कपड़ा उद्योग :-

- इसका विकास क्रउन काल में हुआ।

- पहली टेक्सटाइल मिल बंबई में सन् 1854 को कासवजी दावोर द्वारा ।

- पहली सूती कपड़ा मिल 1818 ई0 को कलकत्ता में स्थापित।


3. चटकल उद्योग

4. चीनी उद्योग :-

- इसका विकास प्रथ महायुद्ध के बाद हुआ।


5. लौह एवं इसपात उद्योग :-

- सन् 1873 ई0 में बाराकर आयरन वर्क्स बिहार के झरिया में।

- सन् 1907 ई0 में जमशेदपुर में टाटा आयरन वर्क्स एण्ड स्टील कम्पनी।

- सन् 1918 ई0 में हीरापुर में इंडियन आयरन स्टील कम्पनी।

- सन् 1823 ई0 को मैसूर स्टेट आयरन वर्क्स भद्रावती में स्थापित।


6. सीमेन्ट उद्योग :-

- सन् 1914 ई0 में इंडियन सीमेंट कम्पनी , पोरबंदर , कटनी सीमेंट एण्ड इंडस्ट्रीज़ ,कटनी तथा पोर्टलैण्ड सीमेन्ट कम्पनी , बूंदी में स्थापित।


7. कागज उद्योग :-

- लखनऊ - 1879 , इलाहाबाद - 1882 , पूना - 1885 , रानीगंज - 1889 , मैसूर - 1939 तथा हेदराबाद - 1942 में।

8. एल्यूमीनियम उद्योग :-

- सन् 1937 ई0 को एल्युमीनियम कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड , कलकत्ता तथा 1944 में अल्वायमें ।

9. चमड़ा उद्योग :-

- सन् 1860 ई0 में हार्नेस एण्ड सैडलरी फैक्ट्र , कानपुर ।

- सन् 1930 ई0 को हाईड्स एण्ड इंक्वायरी कमेटी गठित।


महत्वपूर्ण तथ्य :-

- कपास उद्योग में विदेशी पूंजी नहीं लगाई थी।

- नौरोजी का लेख जिसमें पहली बार भारत से धन निष्कासन की बात कही गई : Englands Deate to India

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