भारत का संवैधानिक विकास ( सन् 1773 ई0 से 1947 ई्र0 ) | Constitutional Development of India (1773-1947)

आज के इस चैप्टर में हम भारत के संवैधानिक विकास पर प्रकाश डालेंगे। जिसमे हम रेग्यूलेंटग एक्ट, पिट्स इंडिया एक्ट, साइमन कमीशन रिपोर्ट, वैवेल योजना, संशोधन एक्ट, चार्टर एक्ट, महारानी विक्टोरिया की घोषणा, शिमला सम्मेलन, भारत परिषद अधिनियम, मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की मांग, कैबिनेट मिशन, प्रथम भारतीय परिषद अधिनियम आदि का अध्यन करेंगे। 
भारत का संवैधानिक विकास  | Constitutional Development of India

भारत का संवैधानिक विकास ( सन् 1773 ई0 से 1947 ई्र0 ) | Constitutional Development of India in Hindi


रेग्यूलेंटग एक्ट : 1773 ई0 - 
जब तक ईस्ट इंडिया कम्पनी एक व्यापारिक संस्था थी चार्टर द्वारा ही काम चल जाता था किन्तु जब कम्पनी ने भारत के एक भू-भाग पर अधिकार कर लिया तथा वह भारतीय नरेशों के नाम से स्वयं शासन करने लगी तो कम्पनी राजनैतिक संस्था हो गई। अतः अब उसके कार्यों पर नियंत्रण रखने ब्रिटिश सरकार और संसद का नियंत्रण स्थापित करना आवश्यक माना गया। इंग्लैण्ड के सम्राट ने कम्पनी को केवल व्यापार करने का अधिकार दिया था साम्राज्य स्थापित करने का नहीं। संसद चाहती तो सीधे सत्ता अपने हाथ में ले सकती थी किन्तु कम्पनी का राज ऐसे भू भाग पर था जो भारत के मुगल बादशाह के अधीन था तथा कम्पनी दीवानी हैसियत से कार्य कर रही थी। साथ ही भारत से कम्पनी द्वारा कमाया गया अकूत धन ब्रिटिश राजनीतिज्ञों को भी लालच में ला देने वाला था।

वहीं दूसरी ओर प्लासी और बक्सर के युद्धों से कम्पनी की आर्थिक दशा कमजोर हो गई थी अतः कम्पनी ने सरकार से ऋण देने की याचना की अतः सरकार से संबंद्ध राजनीतिज्ञों ने कम्पनी के कार्यों की जाँच हेतु अनेक समितियां बना दीं और 1773 ई0 को लार्ड नार्थ ने संसद में विधेयक लाया जिसे रेग्यूलेंटग एक्ट कहा गया। इसका कम्पनी और उसके समर्थकों काफी विरोध किया। इस एक्ट के अनुसार :-

- बंगाल के गर्वनर को गर्वनर जनरल बना दिया गया तथा मद्रास एवं बंबई की प्रेसीडेंसी का नियंत्रण भी बंगाल के हाथों मे सौंप दिया गया।

- कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना किया गया एवं सर इलिजा इम्पे को प्रथम न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। जबकि चेम्बर्स, लिमैस्टर तथा हाइड को न्यायाधीश बनाया गया।

- वारेन हेस्टिंग्ज को गर्वनर जनरल बना कर उसकी परिषद के चार सदस्य ( फिलिप फ्रांसिस, क्लेवरिंग, मॉनसन तथा बरवैल ) को परामर्श हेतु नियुक्त किया गया।

- कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को वही कम्पनी सदस्य चुन सकेगा जिसके पास 1000 पौण्ड का शेयर होगा।


संशोधन एक्ट, 1781 ई0 :- इसके अनुसार


1. कम्पनी पदाधिकारी द्वारा कृत शासकीय कार्य उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर होंगे।

2. उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में कलकत्ता वासी होंगे।

3. प्रतिवादी का निजी कानून लागू होगा। अर्थात भारतीय रीति रिवाजों का ध्यान रखा जावे।

4. प्रांतीय न्यायालय से अपील गर्वनर जनरल की परिषद में की जा सकती है।


पिट्स इंडिया एक्ट , 1784 ई0 :- 

कम्पनी के मामलों की छानबीन हेतु एक प्रवर समिति तथा एक गुप्त समिति गठित की गई। जिसमें प्रवर समिति ने सुप्रीम कोर्ट तथा गर्वनर जनरल के संबंणों एवं गुप्त समिति ने मराठा युद्ध के कारणों की जांच की। यह जांच इसलिए जरूरी थीं क्योंकि मराठा युद्ध के कारण आर्थिक रूप से कमजोर हो चुकी कम्पनी ने 10 लाख पौण्ड का एक और ऋण मांगा अतः गुप्त समिति के अध्यक्ष डण्डास ने एक विधेयक प्रस्तुत किया जो कि अस्वीकार हो गया। अतः वारेन के विरोधी बर्क और फ्रांसिस के द्वारा तैयार इंडिया बिल फॉक्स द्वारा प्रस्तुत किया गया। जिसके पारित होने पर कम्पनी की राजनैतिक हैसियत समाप्त हो जाती। यह बिल हाउस ऑफ कामन्स में तो पारित हो गया किन्तु हाउस ऑफ लॉर्डस में पारित नहीं हो सका और लार्ड नार्थ और फॉक्स की खिचड़ी सरकार गिर गई। इस प्रकार भारतीय मसले पर ब्रिटेन की सरकार का गिरना पहला और अंतिम अवसर था। अतः नये प्रधानमंत्री पिट्स ने नया विधेयक लाया जिसके अनुसार :-

1. भारत में व्यापारिक मामलों के लिए ‘‘बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल’’ स्थापित किया गया। जो राजनैतिक मामलों के लिए उत्तरदायी ‘‘कोर्ट ऑफ डायरेक्टर’’ पर नियंत्रण रखेगा।

2. कम्पनी डाइरेक्टरों की एक गुप्त सभा बनाई गई जो अपने आदेश भारत भेजती ।

3. गर्वनर जनरल की परिषद में सदस्य संख्या चार से कम करके तीन कर दी गई।

4. मद्रास व बंबई के गर्वनर पूर्णतः बंगाल के अधीन घोषित।


सन् 1786 ई0 का एक्ट :- 

इस एक्ट के द्वारा लार्ड कार्नवालिस को गर्वनर जनरल और प्रधान सेनापति दोनों की शक्तियाँ प्रदान की गईं तथा गर्वनर जनरल को परिषद के निर्णय रद्द करने का अधिकार भी पिट ने दे दिया।

सन् 1793 ई0 का चार्टर एक्ट :-


1. कम्पनी के व्यापारिक अधिकार और 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिए गए।

2. नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन भत्ते आदि भारतीय राजस्व से देने की व्यवस्था। यह परम्परा सन् 1919 ई0 तक रही।

सन् 1813 ई0 का चार्टर एक्ट :-


1. कम्पनी का अधिकार पत्र और 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया।

2. कम्पनी का भारत के साथ व्यापारिक एकाधिकार छीन लिया गया। और भारत का दरवाजा समस्त अंग्रेज व्यापारियों के लिए खोल दिया गया।

3. कम्पनी का चीन से अफीम और चाय व्यापार पर एकाधिकार अगले 20 वर्ष के लिए सुरक्षित रहा।

4.ईसाई धर्म प्रचारकों को भारत में धर्म प्रचार की सुविधा प्राप्त हो गई।

5. कम्पनी की आय में से भारतीयों की शिक्षा के लिए एक लाख रू0 व्यय करने का प्रावधान।

सन् 1833 ई0 का चार्टर एक्ट :-


1. कम्पनी का व्यापारिक एकाधिकार पूर्णतः समाप्त करके प्रशासन का कार्य अगले 20 वर्ष के लिए सौंपा गया। अतः कम्पनी अब मात्र राजनैतिक संस्था रह गई।

2. बंगाल का गर्वनर जनरल ‘‘भारत का गर्वनर जनरल’’ बनाया गया।

3. गर्वनर जनरल की परिषद में लार्ड मैकले को चौथे सदस्य विधि सदस्य के रूप में लाया गया।

4. विधि आयोग बना कर भारतीय कानून को संहिता बद्ध एवं संचित करने का प्रयास किया गया।

5. अंग्रेजों को भारत में भूमि क्रय करने का अधिकार दिया गया।

6. दासों की दशा सुधारने का प्रयास किया जावे। सन् 1843 ई0 को दासता समाप्त कर दी गई।

7. सरकारी नौकरियों में भारतीय या अंग्रेज के साथ बगैर भेदभाव के योग्यता के आधार पर चयन किया जावेगा।

8. नवीन प्रांत ‘उत्तर - पश्चिम प्रांत’ की स्थापना की गई।

सन् 1853 ई0 का चार्टर एक्ट :-


1. कम्पनी से सत्ता अपने हाथों में कभी भी लेने का अधिकार संसद को होगा।

2. कम्पनी संचालकों की संख्या 24 से घटा कर 18 कर दी गई जिसमें छः सदस्य राजा मनोनीत करेगा।

3. सरकारी नौकरियों में भर्ती प्रतियोगी परीक्षा से होगी।

4. बंगाल में लेफ्निंट गर्वनर की नियुक्ति।

5. नई प्रेसिडेंसियां बनाने या पुराने की सीमा बदलने का अधिकार बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर को।

6. विधान परिषद का पहली बार गठन किया गया।

7. विधि सदस्य को पूर्ण सदस्य का तर्जा।


सन् 1858 ई0 का कानून :- 

सन् 1853 ई0 में कम्पनी के शासन की जान संसद ने अपने हाथों में ले ली अतः 1857 ई0 की क्रांंति के बाद लार्ड पामर्स्टन ने संसद में विधेयक पारित कर दिया किन्तु सरकार के गिर जाने से नए प्रधानमंत्री डरबी ने विधेयक को पारित करा कानून का रूप दे दिया। इस पर 2 अगस्त 1858 ई0 को साम्राज्ञी विक्टोरिया ने हस्ताक्षर कर दिए।

धाराएं -

1. कम्पनी का राज समाप्त कर शासन क्राउन के हाथों में।

2. बोर्ड्र ऑफ कंट्रोल तथा कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर को भंग कर ‘भारत सचिव’ के पद का सृजन किया गया। अतः इसके द्वारा 1784 ई0 के एक्ट की दोहरी शासन व्यवस्था समाप्त की गई।

3. गर्वनर जनरल को वायसराय कहा गया।

4. आई0 सी0 एस0 हेतु खुली प्रतियोगिता का प्रावधान किया गया।

5. भारतीय राजस्व बिना संसद की स्वीकृति के बाहर नहीं जा सकेगा।


महारानी विक्टोरिया की घोषणा ( 1 नवम्बर 1858 ई0 ) :- 

इलाहाबाद में दरबार आयोजित कर प्रथम वायसराय लार्ड वायकाउण्ट कैनिंग द्वारा महारानी विक्टोरिया की घोषणा का पठन किया गया। दादा भाइ्र नौरोजी ने इसे ‘‘भारतीय स्वतंत्रता का मैग्नाकार्टा’’ कहा।

प्रथम भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 ई0 :- 

सन् 1858 ई0 का अधिनियम जो मात्र शासन का ढाँचा परिवर्तित करता था प्रशासन का नहीं अतः जनता के जीवंत सम्पर्क हेतु एक नया अधिनियम पेश हुआ। जिसे जनता एवं शासक के बीच का सेफ्टी वॉल्व कहा जा सकता है। इसके प्रमुख बातें निम्नलिखित थीं :

1. वायसराय को भारतीयों के सहयोग से कार्य संचालन का पूर्ण अधिकार होगा।

2. कार्यकारिणी में एक अर्थ मंत्री की विधि वेत्ता के रूप में नियुक्ति। अर्थात् न्यायिक प्रक्रिया का संहिताकरण हुआ।

3. विभिन्न कार्यों हेतु विभागों का सृजन कर कार्य करने का अधिकार वायसराय को होगा। इस प्रकार भारत में मंत्रि मण्डलीय व्यवस्था की नींव रखी गई।

4. कलकत्ता , मद्रास तथा बंबई में उच्च न्यायालय स्थापित कर सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया गया।

5. कार्यकारिणी के आधे सदस्य गैर सरकारी होना चाहिए।

6. वायसराय प्रांत निर्माण कर सहायक गर्वनर की नियुक्ति एवं विधान परिषदों की अनुमति के बिना अध्यादेश बना सकता है। अध्यादेश छः माह तक वैध होगा।

भारत परिषद अधिनियम , 1892 ई0 - 

इसमें नरमपंथी कांग्रेस की आंशिक तौर पर मांगें मानीं गईं। सन् 1861 ई0 के अधिनियम में जनता का वास्तविक प्रतिनिधित्व न होने ( प्रतिनिधि राजा और रजवाड़े थे।) के कारण व्यवस्था में विशेष अंतर न आया इसके अलावा विभिन्न जन विरोधी कृत्यों ने भारत सचिव लार्ड क्रॅस को यह अधिनियम पारित करवाने प्रेरित किया।

अधिनियम की प्रमुख बातें -

- कानून निर्मात्री संस्थाओं में भारतीयों को बहस करने एवं प्रश्न पूछने का अधिकार प्राप्त हो गया किन्तु प्रस्ताव रखने, मत विभाजन करने, प्रश्नों का उत्तर न मिलने पर प्रतिकार करने का अधिकार नहीं मिला। अनुपूरक प्रश्न पूछने का हक नहीं दिया गया। परन्तु सूचना का अधिकार प्राप्त हो गया।

- कांग्रेस के दबाव में गैर सरकारी सदस्यों का मनोनयन अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली से किया जाना तय हुआ। इस प्रकार निर्वाचन प्रणाली का मार्ग प्रशस्त हुआ।

- अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य कांग्रेसी आंदोलन का दमन करना था।


भारत परिषद अधिनियम, 1909 ई0 ( मार्ले - मिण्टो सुधार ) :- 

कांग्रेस में उग्रपंथियों का बहुमत देखकर भारत सचिव लार्ड मार्ले एवं वायसराय लाड्र मिण्टो ने नरमपंथी कांग्रेस तथा लीगी मुसलमानों को अपनी ओर करने के उद्देश्य से यह अधिनियम पारित करवाया। जिसके अनुसार :-

- भारत परिषद में भारतीयों की नियुक्ति होगी।

- केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधान मण्डल के आकार एवं शक्ति में वृद्धि होगी।

- मुसलमानों को पृथक मताधिकार एवं निर्वाचन की सुविधा होगी । इसी आधार पर इसे साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व का जनक भी कहा जाता है।

- अनुपूरक प्रश्न पूछने एवं वाद - विवाद का अधिकार दिया गया किन्तु प्रश्न का उत्तर देना अनिवार्य नहीं किया गया।

- निर्वाचन हेतु प्रत्याशियों की योग्यता अधिकारियों से प्रमाणित करानी होगी।

- मताधिकार सीमित रूप से दिया गया।

प्रतिक्रिया -

- इस अधिनियम को स्वयं लाड्र मार्ले ने ‘‘नाग के दाँत बोना’’ कहा था।

- महात्मा गाँधी ने इसे सर्वनाश बताया था।

- के0 एम0 मुंशी ने इसे ‘उदारवादी कांग्रेसियों को रिश्वत’ कहा था।


भारत परिषद अधिनियम, 1919 ई0 ( माण्ट - फोर्ड सुधार ) :- 

भारत सचिव लाड्र माण्टेग्यम ने कॉमन्स सभा में कहा कि ‘‘स्वशासन प्रणाली का उत्तरोत्त्र विकास करने की आशा से धीरे - धीरे उत्तरदायी सरकार की प्राप्ति करना है।’’ अतः इस घोषणा के भविष्य को निश्चित करने अधिनियम घोषित किया गया। जिसके अनुसार :-

- प्रांतों में द्वैध शासन की स्थापना की गई।

- कार्यकारिणी के आधे सदस्यों को भारत में सेवा का 10 वर्षीय अनुभव होना चाहिए।

- सिखों को भी विशेष प्रतिनिधित्व ( मुसलमानों की तर्ज पर ) सदस्यों को सम्मानीय उपाधियां दी गईं।

- सन् 1793 ई0 से भारतीय राजस्व से मिलने वाला सचिव का वेतन अंग्रेजी राजस्व से प्रदान किया जाना।

- केन्द्र में द्विसदनात्मक उत्तरदायी शासन का सूत्रपात हुआ।

- स्त्रियों को सदस्यता नहीं। मताधिकार हेतु संशोधन एवं प्रत्याशियों की योग्यता निर्धारित की गई।

प्रतिक्रिया -

- आम चुनाव आरंभ हो गए।

- द्वैध प्रणाली 1 अप्रैल 1921 ई0 से 1 अप्रैल 1937 ई0 तक चली। मात्र बंगाल ( 1924 - 26 ) एवं मध्य प्रांत ( 1924 - 27 ) निलम्बित रहा। कांग्रेस (गरमदल) ने इसे ‘‘निराशाजनक एवं असंतोषजप्रद’’ कहा।

- द्वैध शासन का जन्म दाता सर लायोनिल कार्टिस को कहा जाता है।


नेहरू रिपोर्ट, 1928 ई0 :- अनुशंसाएं -

1. भारत को तत्काल डोमिनियन स्टेट के रूप में स्वाधीनता मिले।

2. केन्द्र में द्वि सदनात्मक प्रणाली हो।

3. संघीय शासन प्रणाली हो जिसमें अवशिष्ट शक्ति केन्द्र के पास हो।

4. प्रान्तों में द्वैध शासन समाप्त कर स्वायत्तता दी जाए।

5. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली समाप्त कर अल्प संख्यकों को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण मिले।

6. भारत में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की जावे।

7. देशी नरेशों अपने यहां प्रजातंत्र की स्थापना करे।

सैनिक मामलों के लिए प्रतिरक्षा समिति का गठन हो।


साइमन कमीशन रिपोर्ट, 1930 ई0 :- 

देशव्यापी विरोध के बावजूद 7 जून 1930 ई0 को साइमन कमीशन की रिपोर्ट पेश कर दी गई। कमीशन का मुख्य उद्देश्य - साम्प्रदायिकता की समस्या का हल करना था। किंतु सर शिव स्वामी अइयर ने इसे ‘रद्दी की टोकरी में फेंकने लायक’ बताया। चूँकि इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे अतः इसे ‘‘व्हाइट कमीशन’’ नाम से भी पुकारा गया।

इसके प्रावधन :-

1. प्रांतों में द्वैध शासन की समाप्ति ।

2. भारत हेतु संघीय संविधान का निर्माण जो लचीला हो।

3. प्रान्तों में प्रशासनिक स्वायत्तता

4. केन्द्र में भारतीयों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि की जावेएवं अल्पसंख्यक हितों की रक्षा होती रहे।

5. बर्मा को पृथक कर दिया जावे तथा उड़ीसा और सिंध स्वतंत्र प्रांत बने।

6. कार्यकारिणी में भारतीयों को उत्तरदायित्व वाले पद न दिए जाएं।

7. ब्रिटिश नियंत्रण में सेना का भारतीय करण हो।

अंत में साइमन कमीशन पर विचार हेतु गोलमेज परिषद आयोजित करने की बात कही गई।


भारत परिषद अधिनियम , 1935 ई0 :- इसे सन् 1932 के श्वेत पत्र (?????????????)की धुरी कहा जाता है।

लार्ड इरविन की घोषणा :- 

सन् 1929 ई0 इरविन ने कहा कि भारत की उन्नति का अंतिम चरण डोमिनियन स्टेट ही है। अतः इस अधिनियम को साइमन कमीशन, नेहरू रिपोर्ट, तीनों गोलमेज के मसविदें, श्वेतपत्र, संयुक्त प्रवर समिति रिपोर्ट एवं लोथियां रिपोर्ट ( इसमें चुनाव संबंधी प्रावधानों का वर्णन है) के आधार पर तैयार किया गया। इसमें 321 धाराएं एवं 10 परिशिष्ट थे जबकि प्रस्तावना सन् 1919 ई0 के अधिनियम से ली गई थी। जिसके अनुसार :-

- केन्द्र में द्वैध शासन स्थापित करके ।

- भारत सचिव के पद को समाप्त कर उसके स्थान पर त्रिसदस्यीय सलाहकार मण्डल का गठन करना।

- संघ न्यायालय एवं महालेखाकार की नियुक्ति।

- बंबई से सिंध का अलग कर देना।

- 1919 ई0 से प्रांतों में लागू उत्तरदायी शासन की समाप्ति कर प्रान्तों को स्वायत्तता देना।

- संघ लोक सेवा आयोग की पहली बार स्थापना।

- बर्मा को स्वतंत्र कर देना।

- एक कठोर संविधान की स्थापना जिसमें संशोधन का अधिकार मात्र ब्रिटिश संसद को था।

इस अधिनियम को अगस्त 1935 इ्र0 में सम्राट से स्वीकृति मिल गई तथा 1937 इ्र0 से लागू कर दिया गया जो कि 14 अगस्त 1947 ई्र0 तक लागू रहा।

प्रतिक्रिया :-

- कांग्रेस द्वारा इस नए संविधान को पूर्णतया रद्द कर दिया गया। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू के अनुसार - ‘‘अनैच्छिक ,अप्रजातंत्रीय एवं अराष्ट्रवादी संविधान’’ कहा गया।

- ‘‘यह अनेक ब्रेकों वाली इंजन रहित मशीन है।’’ - पं0 जवाहर लाल नेहरू

- ‘‘यह भारत की गुलामी का राजपत्र है।’’ - पं0 जवाहर लाल नेहरू

- ‘‘अंदर से पूर्णतया खोखला’’ - पं0 मदन मोहन मालवीय

- ‘‘पूर्णतया सड़ा हुआ, मूल रूप से बुरा और बिल्कुल अस्वीकृत करने वाला’’ - मु0 अली जिन्ना

- ‘‘दोहरी शासन प्रणाली से भी बुरा’’ - राजगोपालाचारी

- ‘‘न तो यह हिन्दु राज है और नही मुस्लिम राज है।’’ - फजलूल हक, मुख्यमंत्री बंगाल

1 अप्रैल 1937 से प्रांतीय सवायत्तता लागू हो जाने पर भारतीयों को विधान मण्डलों में शासन प्रबंध का अधिकार मिल गया अतः 1936 - 37 के प्रथम चुनावों में कांग्रेस को 11 में से पांच स्थानों पर बहुमत प्राप्त हो गया एवं तीन में सहयोगी मंत्रिमण्डल बनाए , जो इस प्रकार रहे :-

प्रांत नेतृत्व अन्य प्रमुख दल

पंजाब सिकंदर हयात खां कम्युनिस्ट पार्टी

मध्य प्रान्त एन0बी0खरे डी0पी0मिश्र (गृह मंत्री) कांग्रेस

मद्रास सी0 राजगोपालाचारी टी0 प्रकाशम (राजस्व) कांग्रेस

संयुक्त प्रांत कांग्रेस

बिहार कांग्रेस

उड़ीसा कांग्रेस

बंबई बी0जी0खेर के0एम0 मुंशी (गृह मंत्री)

बंगाल फजलूल हक

पश्चिम प्रांत ( सिंध )

उत्तर प्रांत

असम

यहां पर मुस्लिम लीग ने कहा कि मुसलमानों का हित कांग्रेस के हाथ में सुरक्षित नहीं है। तथा अक्टुबर 1939 ई0 को बगैर कांग्रेसी मंत्रिमण्डल की सहमति लिए भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल कर आपात काल की घोषणा कर दी। तब कांग्रेस ने युद्ध के उद्दैश्य की घोषणा तथा युद्ध के बाद भारत को स्वतंत्र करने की बात कही किन्तु इन बातों पर कोई तवज्जो न दिए जाने पर विरोध में कांग्रेस मंत्रिमण्डल ने त्यागपत्र दे दिए। इस प्रकार 2 वर्ष 4 माह का कार्यकाल ही ये मंत्रिमण्डल पूरा कर पाए।

जिन्न की मुस्लिम लीग ने 22 दिसम्बर 1939 ई0 को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया कि देश को कांग्रेस से छुटकारा मिल गया।


मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की मांग :- 

23 मार्च 1940 ई0 का लाहौर में मुस्लिम लीग का वार्षिक अधिवेशन हुआ जिसमें बगैर पाकिस्तान का निर्माण किए कोई भी बात स्वीकार नहीं होगी का प्रस्ताव रखा गया।


कांग्रेस का प्रस्ताव :- 7 जुलाई 1940 ई0 को भारत को युद्ध के बाद स्वतंत्रता देने की शर्त पर कांग्रेस ने युद्ध में समर्थन का प्रस्ताव रखा किन्तु इसे अस्वीकार कर दिया गया।


अगस्त प्रस्ताव :- 8 अगस्त 1940 को भारत के वायसराय लिनिलिथगो ने अगस्त प्रस्तावों की घोषण की। जिनके अनुसार :-

- भारतीयों और सरकार में आपसी मतभेद होने पर भी ‘‘युद्ध परामश समिति’’ बनाने में देरी नहीं की जा सकती है।

- भारतीय स्वयं अपना संविधान बनाने में मुख्य भूमिका में रहेंगे।

- भारत को स्पष्ट औपनिवेशिक स्वतंत्रता दी जावेगी।


प्रतिक्रिया :-

- संविधान में अपनी भूमिका का स्वागत मृ0 अली जिन्ना ने किया। क्योंकि यह विश्वास दिलाया गया कि भारत का भावी संविधान के कठिन प्रश्न का मामला विभाजन से ही सुलझेगा।

- पं0 जवाहर लाल नेहरू ने स्पष्ट औपनिवेशिक स्वतंत्रता की बात को नकार दिया।

क्रिप्स मिशन, 1942 ई0 :- 

युद्ध में जापान का सामना करने के लिए कांग्रेस, ब्रिटिश सरकार की सहायता करे अतः संकटापन्न युद्ध की स्थिति से उबरने ब्रिटेन ने भारतीय नेताओं से विचार विमर्ष करने सर स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मण्डल भारत भेजा। भारतीय नेताओं से विचार विमर्ष के बाद क्रिप्स ने अपनी योजना प्रस्तुत कीं। जिसके अनुसार :-

- युद्ध की संकट कालीन परिस्थियों को देखते हुए भारत का शासन फिलहाल ब्रिटिश सरकार द्वारा संचालित हो।

- भारतीय संघ के निर्माण का प्रावधान रखा गया।

- भारतीय संविधान का निर्माण जनता की प्रतिनिधि संविधान सभा द्वारा ही किया जाना चाहिए।


वैवेल योजना , 1944 ई0 :- 

भारत में व्याप्त गतिरोध को दूर करने वैवेल मार्च 1945 ई0 को इंग्लैण्ड गया तथा प्रधानमंत्री चर्चिल और भारत सचिव एमरी से विचार विमर्ष कर अपनी योजना 4 जून 1945 ई0 को रेडियो ब्रॉड कास्ट में प्रस्तुत की जिसके अनुसार :-

- गर्वनर जनरल की कार्यकारिणी में प्रधान सेनापति के अलावा सभी भारतीय होंगे। जिसमें हिंदू व मुसलमान बराबर होंगे। जबकि हरिजनों को सवर्णों से पृथक प्रतिनिधित्व दिया जावेगा।

- प्रांतों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जावेगा।

- इस योजना पर विचार हेतु शिमला में सम्मेलन अुलाया जावेगा।

शिमला सम्मेलन :- 25 जून 1945 ई0 को


प्रमुख प्रतिभागी - जवाहर लाल नेहरू , मोहम्मद अली जिन्ना , इस्माइल खां , सरदार पटैल , अबुल कलाम आजाद , तारा सिंह और अब्दुल गफ्फार खान आदि।

इस सम्मेलन में वैवेल योजना को अस्वीकार्य करते हुए शिमला सम्मेलन को असफल घोषित कर दिया गया क्योंकि जिन्ना गर्वनर जनरल की कार्यकारिणी में सभी मुसलमान सदस्य लीग से चाहता था जबकि कांग्रेस इसका विरोध कर रही थी।

कैबिनेट मिशन :- 

मार्च 1946 ई0 को पैथिक लॉरेन्स ( भारत सचिव ), स्टैफोर्ड क्रिप्स ( अध्यक्ष , बोर्ड ऑफ ट्रेड )और ए0 बी0 अलेक्जेण्डर ( नौ सेना मंत्री ) भारत आए। भारत में सत्ता हस्तांतरण पर विभिन्न दलों एवं नेताओं से बातचीत के बाद इस शिष्ट मण्डल ने देखा कि लीग और कांग्रेस के बीच समझौता होना असंभव है , अतः उसने अपनी ओर से एक योजना दी। जो इस प्रकार से थी :-

- पाकिस्तान की मांग को ठुकरा दिया गया और प्रांतों को ताकतवर बनाते हुए संघ को कमजोर कर दिया गया।

- अप्रत्यक्ष निर्वाचन विधि से संविधान सभा का गठन किया जावेगा।

- एक अंतरिम सरकार का गठन किया जावेगा जिसमें सभी वर्ग के लोग होंगे।

- राष्ट्रमण्डल की सदस्या भारत की इच्छा पर होगी।

- देशी रियासतों का विलय उनकी इच्छा पर होगा।

- संविधान सभा ग्रेट ब्रिटेन से एक संधि करेगी।

प्रतिक्रिया :- यह योजना या तो पूर्णतः स्वीकार की जाना थी या पूर्णतः अस्वीकार। अतः कांगेस ने प्रांतों के गुट बनाने पर अप्रसन्नता के बावजूद इसे स्वीकार कर लिया किन्तु जिन्ना ने पाकस्तिन की मांग न माने जाने पर इसका विरोध किया। अंततः दोनों ने अनिच्छा के बावजूद इसे स्वीकार कर लिया।

संविधान सभा के चुनाव और अंतरिम सरकार का गठन :- 

29 जून 1946 ई0 को कैबिनेट मिशन वापस इंग्लैण्ड लौट गया और यहां भारत में संविधान सभा के लिए चुनाव हो गए तथा मुस्लिम लीग ने 25 प्रतिशत से भी कम स्थान प्राप्त किए। अतः 29 जून 1946 ई0 को जिन्ना की लीग ने कैबिनेट मिशन की योजना को अस्वीकार कर दिया। तथा 16 अगस्त 1946 इ्र0 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने को कहा।


प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस ( 16 अगस्त 1946 ई0 ) - यह आंदोलन हिंदुओं के विरूद्ध हो गया अतः भीषण दंगे और मारकाट हुए।


अंतरिम सरकार :- 

गर्वनर जनरल द्वारा जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार बनाने को कहा अतः 2 सितम्बर 1946 ई0 को अंतरिम सरकार बन गई जिसमें बार - बार अनुरोध करने के बाद लीग भी सम्मिलित हो गई। किन्तु लीग संविघान सभा का अंग नहीं बनी। 9 दिसम्बर 1946 ईव को दिल्ली में संविधान सभा की पहली बैठक डॉ0 सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में हुई।


एटली की घोषणा ( 20 फरवरी 1947 ई0 ) :- 

भीषण साम्प्रदायिक दंगों के कारण परिस्थितियां अंग्रेजों के नियंत्रण से बाहर होते देखते हुए प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा कर दी कि जून 1948 ई0 तक भारत की सत्ता भारतीयों को सौंप दी जावेगी।

अब लीग ने बँटवारे के लिए एक प्रचण्ड आंदोलन शुरू कर दिया। चोरों ओर मौत का ताण्डव दंगों के रूप में नाच रहा और घृणा तथा आतंक का वातावरण निर्मित हो गया। अतः स्पष्ट हो गया कि बँटवारा अंतिम सत्य है।

माउण्टबेटन योजना :- 

विभिन्न नेताओं से विचार विमर्ष करके 3 जून 1947 ई0 को माउण्टबेटन ने एक योजना दी। जिसके अनुसार :-

- भारत का बँटवारा कर दिया जावेगा। तथा रियासतें स्वेच्छा या जनमत से जिस भी भाग में जुड़ना या स्वतंत्र रहना चाहें उनकी इच्छा पर होगा।

- सत्ता जनमान्य सरकार को सौंप दी जावेगी।

- संविधान किसी प्रांत पर लादा नहीं जावेगा। उसे अस्वीकार भी किया जा सकता है।


प्रतिक्रिया :- यह योजना सभी ने स्वीकार कर ली।

भारत स्वतंत्रता अधिनियम :- 

3 जून की योजना के आधार पर 4 जुलई 1947 ई0 को ब्रिटिष संसद में विधेयक लाकर 15 अगस्त 1947 ई0 को भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गई। इसके अनुसार :-

- भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान नामक नवीन राष्ट्र अस्तित्व में आया।

- नया संविधान बनने तक दोनों देश सन् 1935 ई0 के अधिनियम के आधार पर कार्य करते रहेंगे।

- देशी रियासतें अपना निर्णय लेने स्वतंत्र होंगी।

- राष्ट्रमण्डल की सदस्यता एच्छिक रखी गई।


महत्वपूर्ण तथ्य :-

- संविधान सभा के सदस्य जो अंग्रेजी नहीं जानते थे। - अब्दुल गफ्फार खान

- आय से अधिक संपत्ति रखने पर पूछताछ हुई थी। - लाड्र कार्नवालिस से

- अंग्रेजों को भगाने रूसी जार से मदद मांगी। - राम सिंह ने

- ट्रेड यूनियन एक्ट पारित - 1926 इ्र0

- भारत छोड़ो आंदोलन के बाद गांधीजी को आगा खां पैलेस में रखा गया।

- स्वतंत्रता लक्ष्य - लोहौर अधिवेशन

- प्रसूति लाभ योजना - 1930 - 40

- भू - स्वामी अधिकार जांच समिति - डलहौजी द्वारा इनाम आयोग स्थापित

- तख्त - ए - ताउस बैठने वाला अंतिम मुगल - अजीमुष्षान

- ब्रिटिश भारत में दास प्रथा का अंत - 1789 से 1843 तक

- प्रसिद्ध इमामवाड़ा बनवाया - आसफुद्दौला ने

- पाश्चात्य विद्या के समर्थक ट्रेवेलियन और मैकाले ने 1935 ई0 को अंग्रेजी भाषा के प्रभाव से भारत की स्वतंत्रता की अपरिहार्य सत्य भविष्यवाणी कर दी थी।

- इंग्लैण्ड से प्रकाशित व्यंग्य पत्रिका ‘‘पंच’’ में भारतीयों को ‘उपमानव जीव’ कहा था।

- गांधीजी के पूर्व सारे भारत का राजनैतिक दौरा सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने किया था।

पाश्चात्य शिक्षा तथा समाचार पत्रों का विकास राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारक हैं।

- सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने 1875 से कलकत्ता से राजनैतिक जीवन आरंभ किया।

- सर्वप्रथम 1896 इ्र0 को रानाडे के नेतृत्व में महाराष्ट्र में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई।

- 15 अगस्त 1906 को सर गुरूदास कामथ द्वारा राष्ट्रय शिक्षा परिषद स्थापित की गई। इसी दौरान लाला लाजपत राय को देश निकाला हुआ।

- सबसे पहले बंबइ्र प्रांत के मुसलमानों ने आधुनिक शिक्षा को अपनाया।

- ‘‘गदर’’ के मुख पृष्ठ पर लिखा होता था ‘‘अंग्रेजी राज का दुश्मन’’

- जतिन मुखर्जी को ‘‘वाघा जतीन’’ भी कहा जाता था।
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