श्री नरसिंह चालीसा-Shri Narasimha Chalisa

Shri Narasimha Chalisa-श्री नरसिंह चालीसा

Shri Narasimha Chalisa
॥ दोहा ॥

मास वैशाख कृतिका युत, हरण मही को भार ।
शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन, लियो नरसिंह अवतार ॥
धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम ।
तुमरे सुमरन से प्रभु, पूरन हो सब काम ॥

॥ चौपाई ॥

नरसिंह देव में सुमरों तोहि । 
धन बल विद्या दान दे मोहि ॥१॥

जय जय नरसिंह कृपाला । 
करो सदा भक्तन प्रतिपाला ॥२॥

विष्णु के अवतार दयाला । 
महाकाल कालन को काला ॥३॥

नाम अनेक तुम्हारो बखानो । 
अल्प बुद्धि में ना कछु जानों ॥४॥

हिरणाकुश नृप अति अभिमानी । 
तेहि के भार मही अकुलानी ॥५॥

हिरणाकुश कयाधू के जाये । 
नाम भक्त प्रहलाद कहाये ॥६॥

भक्त बना विष्णु को दासा । 
पिता कियो मारन परसाया ॥७॥

अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा । 
अग्निदाह कियो प्रचंडा ॥८॥

भक्त हेतु तुम लियो अवतारा । 
दुष्ट-दलन हरण महिभारा ॥९॥

तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे । 
प्रह्लाद के प्राण पियारे ॥१०॥

प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा । 
देख दुष्ट-दल भये अचंभा ॥११॥

खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा । 
ऊर्ध्व केश महादष्ट्र विराजा ॥१२॥

तप्त स्वर्ण सम बदन तुम्हारा । 
को वरने तुम्हरों विस्तारा ॥१३॥

रूप चतुर्भुज बदन विशाला । 
नख जिह्वा है अति विकराला ॥१४॥

स्वर्ण मुकुट बदन अति भारी । 
कानन कुंडल की छवि न्यारी ॥१५॥

भक्त प्रहलाद को तुमने उबारा । 
हिरणा कुश खल क्षण मह मारा ॥१६॥

ब्रह्मा, विष्णु तुम्हे नित ध्यावे । 
इंद्र महेश सदा मन लावे ॥१७॥

वेद पुराण तुम्हरो यश गावे । 
शेष शारदा पारन पावे ॥१८॥

जो नर धरो तुम्हरो ध्याना । 
ताको होय सदा कल्याना ॥१९॥

त्राहि-त्राहि प्रभु दुःख निवारो । 
भव बंधन प्रभु आप ही टारो ॥२०॥

नित्य जपे जो नाम तिहारा । 
दुःख व्याधि हो निस्तारा ॥२१॥

संतान-हीन जो जाप कराये । 
मन इच्छित सो नर सुत पावे ॥२२॥

बंध्या नारी सुसंतान को पावे । 
नर दरिद्र धनी होई जावे ॥२३॥

जो नरसिंह का जाप करावे । 
ताहि विपत्ति सपनें नही आवे ॥२४॥

जो कामना करे मन माही । 
सब निश्चय सो सिद्ध हुई जाही ॥२५॥

जीवन मैं जो कछु संकट होई । 
निश्चय नरसिंह सुमरे सोई ॥२६॥

रोग ग्रसित जो ध्यावे कोई । 
ताकि काया कंचन होई ॥२७॥

डाकिनी-शाकिनी प्रेत बेताला । 
ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला ॥२८॥

प्रेत पिशाच सबे भय खाए । 
यम के दूत निकट नहीं आवे ॥२९॥
सुमर नाम व्याधि सब भागे । 
रोग-शोक कबहूं नही लागे ॥३०॥

जाको नजर दोष हो भाई । 
सो नरसिंह चालीसा गाई ॥३१॥

हटे नजर होवे कल्याना । 
बचन सत्य साखी भगवाना ॥३२॥

जो नर ध्यान तुम्हारो लावे । 
सो नर मन वांछित फल पावे ॥३३॥

बनवाए जो मंदिर ज्ञानी । 
हो जावे वह नर जग मानी ॥३४॥

नित-प्रति पाठ करे इक बारा । 
सो नर रहे तुम्हारा प्यारा ॥३५॥

नरसिंह चालीसा जो जन गावे । 
दुःख दरिद्र ताके निकट न आवे ॥३६॥

चालीसा जो नर पढ़े-पढ़ावे । 
सो नर जग में सब कुछ पावे ॥३७॥

यह श्री नरसिंह चालीसा । 
पढ़े रंक होवे अवनीसा ॥३८॥

जो ध्यावे सो नर सुख पावे । 
तोही विमुख बहु दुःख उठावे ॥३९॥

“शिव स्वरूप है शरण तुम्हारी । 
हरो नाथ सब विपत्ति हमारी” ॥४०॥

॥ दोहा ॥

चारों युग गायें तेरी महिमा अपरम्पार ।
निज भक्तनु के प्राण हित लियो जगत अवतार ॥
नरसिंह चालीसा जो पढ़े प्रेम मगन शत बार ।
उस घर आनंद रहे वैभव बढ़े अपार ॥

॥ इति श्री नरसिंह चालीसा संपूर्णम् ॥
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