सिंधु घाटी सभ्यता की खोज Sindhu Ghati Sabhyata ki khoj Part-2 प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी

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हरियाणाः-


बनावली:- प्राचीन सरस्वती (हिसार जिला) के तट पर स्थित इस स्थल की खोज सन् 1973-74 में पुरातत्व विभाग के आर0एम0विष्ट ने की थी। यहां से सिंधु सभ्यता तथा इसके पूर्व की सामग्री भी प्राप्त हुई है। यहां से हल की आकृति के खिलौने, सड़कें और जल निकास के अवषेष तथा जौ , तिल व सरसों का ढेर प्राप्त हुआ है।यहां से प्राप्त मृद भाण्डों में से कुछ में सिंधु लिपि क ेलेख भी प्राप्त हुए हैं। मातृ देवी की मूर्तियां व बांट भी प्राप्त हुए हैं। ये सभी उच्च कोटि का जीवन दर्षाते हैं। यह एक प्राक् हड़प्पा स्थल है।


मीत्ताथल:- भिवानी जिले में प्राचीन यमुना तट पर स्थित इस स्थल का उत्खनन कार्य सन् 1968 में पंजाब वि0वि0 चण्डीगढ़ द्वारा कराया गया। यहां से प्राप्त सामग्री कालीबंगा से प्राप्त पूर्वी सिंधु सभ्यता की सामग्री से मेल दर्षाती है।


राखीगढ़ी:- हरियाण के जिन्द जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज प्रो0 सूरजभान और आचार्य भगवान देव ने की थी। यहां से प्राप्त सामग्री में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एक मुद्रा है। जहां पर सिंधु लिपि में एक लेख है। यह स्थल हड़प्पा, माहन जोदड़ो और गनवेरीवाला से बड़ा है।


राजस्थान:-


कालीबंगा:- प्राचनी सरस्वती नदी के तट पर स्थित यह स्थान गंगानगर जिले में स्थित है। सन् 1953 में ए0 घोष ने इसकी खोज की। 1961 में डाॅ0 बी0डी0 लाल एवं बी0के थापड़ ने यहां खुदाई कार्य करवाया। मोहन जोदड़ो की तुलना में कालीबंगा एक दीन हीन बस्ती थी। उत्खनन में कब्रिस्तान, हल कके निषाान / जुते खेत/ अन्नागार व हवन कुण्ड के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।यहां के मकानों में कच्ची इ्रंटों का प्रयोग होता था। वास्तविकता में इस स्थान की खोज सन् 1942 में स्टाइन ने की थी।


उत्तर प्र्रदेष:-


आलमगीर पुर:- हिण्डन नदी के तट पर मेरठ जिले में स्थित इस प्राच्य स्थल की खोज सन् 1958 में की गईं। यहां से सभ्यता के अवनति काल की सामग्री प्राप्त हुई है।


कौषाम्बी:-


गुजरात:-


लोथल:- 

Sindhu Ghati Sabhyata ki khoj Well lothal gujrat




साबरमति व भागवास नदी के संगम पर खम्भात की खाड़ी के ऊपर गुजरात राज्य में अवस्थित इस जगह को सर्वप्रथम डाॅ0 एस0आर0राव ने सन् 1957 में खोजा। यह स्थान हड़प्पाई समुद्री स्थल का सर्वाधिक प्रसार वाला स्थल है। जिन्होंने बताया कि यहां इससे पूर्व भी लोग रहते थे। उत्खनन में यहां से मिटटी के काले लाल बर्तन एक गोदी के अवषेष जहां से पष्चिमी एषिया से जल मार्ग द्वारा व्यापारिक संबंध थै। यहां से मनके बनाने का कारखाना, धाान, फारस की मोहर, घोड़े की लघु मृण्मूर्ति , अग्निकुण्ड व तकली प्राप्त हुए हैं।


लोथल के 6 बार बसने के अवषेष मिलते हैं। संभवतः यह बाढ़ द्वारा नष्ट हुआ था। यहां पर युगल शवाधान एवं धान व बाजरे की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।





धौलावीरा



Sindhu Ghati Sabhyata ki khoj dholaveera gujrat

धौलावीरा गुजरात राज्य के कच्छ के रण में ज्ञींकपत ठमलजए अवस्थित है। 1990 के बाद खोजा गया यह एकमात्र स्थल है, जो कि हड़प्पा और माहन जोदड़ो से भी बड़ा है।


यहां से पत्थरों के सुरक्षित वास्तु संरचना प्राप्त हुए हैं। यहां से सिंधु लिपि में लिखित साइनबोर्ड भी प्राप्त हुआ है।





Dholavira appears to have had several large reservoirs, and an elaborate system of drains to collect water from the city walls and house tops to fill these water tanks.




गोला धरो



इस स्थल को बगसरा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल 1996 से 2004 के बीच प्रकाष में आया। यहां से प्राचीन सिंधु मुहर प्राप्त हुई है। । A distinctive ancient Indus seal was found there, as well as extensive evidence for the sudden evacuation of this tiny town with well stocked manufacturing facilities.





महाराष्ट्र



दैमाबाद: मुम्बई के निकट महाराष्ट्र राज्य में स्थित इस स्थल की खोज सन् 1958 में हुई। it is a controversial site. Some suggest that the pottery and single shard with ancient Indus signs on it is definitive of Harappan settlement; others say the evidence is not sufficient. A unique hoard of exquisite bronze chariots and animals that may or may not be of Indus Civilization style was also found here.



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