आप सिंधु घाटी सभ्यता की खोज का Part-3 पढ़ने जा रहे है।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज का Part-1 और Part-2 पढ़ने के लिए आप नीचे वाली लिंक पर जाए
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज Part-1
सिंधु घाटी की सभ्यता का Part-2
और प्रारंभ से इस बिषय का अध्ययन करें
आज आप सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के निम्नलिखित बिंदुओं का अध्ययन करेंगे -
- सिंधु सभ्यता को जानने के स्रोत,
- सिंधु सभ्यता के निर्माता एवं निवासी,
- सिंधु निवासियों का सामाजिक जीवन,
- सिंधु निवासियों का आर्थिक जीवन,
- सिंधु निवासियों का धार्मिक जीवन,सिंधु निवासियों की कला,
सिंधु सभ्यता को जानने के स्रोत:-
मुद्राओं पर अंकित शब्दों के अतिरिक्त कोई अन्य लिखित सामग्री जो सभ्यता पर प्रकाष डाले उपलब्ध नहीं है। मुद्रा लिपि को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है अतः इस सभ्यता के विषय में जानने के लिए पूर्ण रूप से उत्खनन से प्राप्त नगर , मकान, पत्थर , प्रसाधन, कंकाल व बर्तन आदि मूल सामग्री पर ही आधारित होना पडता है।
सिंधु सभ्यता के निर्माता एवं निवासी:-
यह प्रष्न आज भी विवादास्पद है, फिर भी अद्यतन शोध कार्यों से तीन मत उभर कर आए हैं:-
1. मैसोपोटामिया की संस्कृति की देन:- व्हीलर इस मत के प्रतिपादक हैं, जो कि पूर्णतः ग्राह्य नहीं है।
2. बलूची संस्कृति की देन:- इस मत के प्रतिपादक फेयरसर्विस हैं, किन्तु इसके अकाट्य एवं निष्चित प्रमाण अनुपलब्ध हैं।
3. भारतीय संस्कृति:- श्री अमलानंद घोष के मतानुसार यह मत अधिक तर्क संगत है प्रतीत होता है। तथा इसे सर्वमान्य तथ्य के रूप में स्वीकार किया जाता है।
सिंधु निवासियों का सामाजिक जीवन:-
संरचना एवं जीवन:- परम्परागत रूप से समाज की इकाई परिवार ही थी। तथा परिवार अलग-अलग निवास करते थे। समाज मातृसत्तात्मक थे, जो व्यवसाय के आधार पर चार भागों में विभाज्य थे।
1. विद्वान 2. योद्धा 3. व्यवसायी 4. श्रमजीवी
सामाजिक सम्पन्नता कारण निवासियों का युद्ध प्रेमी न होना प्रतीत होता है।
भोजन:- शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों जरह के लोग थे। शाकाहारी भोजन में गेंहू, जौ, चावल / चाइल्ड के अनुसार/, मिठाईयां, खजूर, फल, तरबूज, नींबू, दूध और दही प्रमुख था। विभिन्न प्रकार की चटनी / सिल बट्टे प्राप्त हुए हैं/ खाने के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं। किन्तु मुख्य भोजन गेंहू ही था।
मांसाहार में गौ मांस, बकरी, बत्तख, मुर्गी, घड़ियाल आदि प्रचलित थे। सिंधु वासी पेय पदार्थों का भी उपयोग करते थे।
वेशभूषा और आभूषण:- वेषभूषा की जानकारी हेतु तत्कालीन मूर्तियों पर ही हम आश्रित हैं। कपड़े साधारणतया सूती के ही पहनते थे। किन्तु उनी कपड़े भी प्रचलित थे। स्त्री-पुरूष दोनों के पहनावों में दो कपड़ों का इस्तेमाल होता था। स्वर्ण आभूषणों को देखकार लगता है कि ये आधुनिक बाॅण्ड स्टीट , लण्दन से आए होंन कि पांच हजार वर्ष पूर्व के किसी प्रागैतिहासिक घर से। यह कथन सर जान मार्षल ने दिया है।
प्रसाधन सामग्री:- तत्कालीन स्त्रियां दर्पण, कंघी, काजल, सुरमा, सिन्दूर, बालों की पिन, इत्र एवं पावडर का प्रयोग करती थीं।
मनोरंजन के सााधन:- षिकार खेलना, नाचना, गाना, बजाना, मुर्गों की लड़ाई व बच्चे खिलौनों से खेलते थे।
औषधियां:- हिरण बारह सिंहों के सींग, नीम की पत्ती व षिलाजीत के औषधीय गुणों से परिचित थे। कालीबंगा व लोथल से खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
अस्त्र-षस्त्र:- ये ताम्र व कांस्य निर्मित थे। प्रायः कुल्हाड़ी, छुरा, बरछी, गौफन, कटार का बहुतायत प्रयोग करते थे। संभवतः सिंधु वासी को ढाल व षिरस्त्राण का ज्ञान न था किन्तु तीर कमान से परिचित थे।
आवागमन के साधन:- बैलगाड़ी या इक्का
मृतक संस्कार:- मार्षल के अनुसार मृतक संस्कार की तीन विधियां थीं।
1. पूर्ण समाधिकरण
2. आंषिक समाधिकरण
3. दाह कर्म
सिंधु निवासियों का आर्थिक जीवन:-
कृषि:- यह मुख्य व्यवसाय था। गेंहू, जौ, कपास, मटर, तिल, व संभवतः चाल की खेती की जाती थी। जिन्हें विषाल अन्नागारों में रखा जाता था। तथा बाहर पीसने की व्यवस्था होती थी।
पषु पालन:- गाय, बैल, भैंस व भेड़ के भी अवषेष प्राप्त हुए हैं। उंट पालते थे पर ज्यादा नहीं। संभवतः यहां के निवासी घोड़े से अपरिचित थे।
व्यापार:- विदेषों से व्यापारिक संबंध थे। व्यापार जल एवं स्थल दोनों मार्गों से होता था। ये, प्रायः सोना, चांदी, सीसा, तांबा आदि आयात करते थे। पिगट के अनुसार दासों का व्यावार भी होता था। मैसोपोटामिया, अफगानिस्तान व मध्य एषिया से व्यापारिक संबंध थे। सिक्कों का प्रचलन न होने से वस्तु विनिमय का प्रयोग होता था।
माप तौल की दषमलव प्रणाली प्रचलित थी। तौलने की संभवतः सोलह के अनुपात में थी। विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का आयात दक्षिण और पूर्वी भारत, कष्मीर, कर्नाटक व नीलगिरी से होता था। तांबा, राजस्थान से प्राप्त होता था। स्लेट का आयात राजस्थान, गुड़गांव व कांगड़ा से होता था।
सिंधु निवासियों का धार्मिक जीवन :-
सिंधु सभ्यता कालीन धर्म के विषय में जानने के लिए पूर्णतः पुरातात्विक स्त्रोतों पर निर्भर होना पड़ता है। इनके अलावा मैसोपोटामिया से प्राप्त लेख / जिन्हें पढ़ा जा चुका है/ से भी धार्मिक जानकारी प्राप्त होती है।
सिंधु सभ्यता के अवषेषों में मंदिर के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं।
मातृ देवी की पूजा:- मातृ देवी मूर्तियां धुंए में रंगी प्रापत हुईं हैं।संभवतः पूजन के समय सामने धूप जलाई जाती होगी। एक स्त्री की अर्धनग्न मूर्ति प्राप्त हुई है। मातृदेवी का स्वरूप अम्बा, काली आदि रूपों में पूजनीय था। हड़प्पा से शीर्षासनरत स्त्री, पौधे का जन्म देते हुए दृष्टव्य है जो पृथ्वी को मातृ स्वरूप में मानने का द्योतक है।
शिवपूजा:- पुरूष देवता की त्रिमुखी व त्रिनेत्री योगासन मुद्रा में मूर्ति को पषुपति शिव के रूप में मान्यता प्राप्त थी। /मुहरों पर अंकित/ तथा शिवलिंग रूपी पत्थरों की प्राप्ति से शिव पूजा की धारणा को प्रबल मान्यता प्राप्त हुई है।
योनि पूजा:- कुछ सीप, मिट्टी के छल्ले प्राप्त हुए हैं, जिन्हें अप्रामाणिक रूप से योनि का प्रतीक माना गया है।
पशु पूजा:- गाय की अपेक्षा बैल ज्यादा पूजनीय थे। इसकी जानकारी तत्कालीन चित्रों से प्राप्त होती है।पक्षियों में बत्तख को पवित्रतम माना जाता था।
सूर्य पूजा:- मुद्राओं से प्राप्त सूर्य, स्वास्तिक एवं पहियों के चिन्ह से सूर्योपसना की जानकारी प्राप्त होती है।
वृक्ष पूजा:- पीपल को पवित्रतम वृक्षों में माना जाता था।
नदी पूजा:- स्नानागारों व स्नानकुण्डों से जल पूजा का ज्ञान होता है।
अन्य प्रथाएं:-
1. आधुनिक समयानुसार धूप व अग्नि का भी प्रयोग करते थे।
2. भजन कीर्तन के भी संकेत मिलते हैं।
3. ताबीजों की प्राप्ति प्रचलित अंधविष्वासों को दर्षाती है।
सिंधु निवासियों की कला:-
भवन निर्माण कला :- विषाल अन्नगृह, स्नानागार व नगर निवेष से ज्ञात होता है कि लोग इस कला में दक्ष थे।
ऽ मकानों का निर्माण सड़क के दोनों ओर किया जाता था।
ऽ खिड़की व दरवाजे मुख्य सड़क की ओर न थे।
ऽ दरवाजे, दीवार की समाप्ति के स्थान पर होते थे बीच में नहीं।
ऽ मोहन जोदड़ो के मकानों में कुंए थे किन्तु हड़प्पा में नहीं।
नगर योजनाः- मैके ने कहा है कि वे लंकाषायर के किसी आधुनिक नगर के अवषेष हैं। नगर नदियों के मुहाने पर बसाए गए थे। सड़कों के किनारे वृक्षारोपण होता था।
मूर्ति कला:- धातु, पाषाण व मिट्टी की मूर्तियां प्राप्त हुईं हैं। प्राप्त मावन मूर्तियां ठोस हैं, जबकि पषु मूर्तिंयां विषाल अदर से खोखली हैं। माहन जोदड़ो प्राप्त एक त्रिभंगी कांस्य मूर्ति उन्नत मूर्ति कला का ठोस प्रमाण है। डाॅ0 त्रिपाठी के अनुसार यह मूर्ति ऐतिहासिक काल की किसी भी मूर्ति से अणिक उत्कृष्ट है। किन्तु वाषम ने इसको कलात्मक स्वीकार नहीं किया है।
संगीत कला:- तबला व ढोल की प्राप्ति संगीत प्रेम को दर्षाती है।
ताम्रपत्र लेखन:- वर्गाकार ताम्र पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनके ओर मनुष्य व पषुओं की आकृति तथा दूसरी ओर लेख अंकित है।
सिंधु लिपि:- सिंधु लिपि भाव प्रधान चित्रात्मक लिपि है, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। लिपि पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास सन् 1925 में वैडेल द्वारा किया गया। जिसकी तुलना सुमेरी लिपि से की है। इसे दांए से बांए लिखा माना गया है।
सिंधु निवासियों का राजनैतिक विन्यास
1. सिंधु प्रदेष के शासन पर पुरोहित वर्ग का अधिकार था। - स्टुअर्ट पिगट
2. मोहन जोदड़ो का शासन राज तंत्रात्मक न हो कर जन ततंत्रात्मक था। - हण्टर
3. मोहन जोदड़ो का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथ में था। - मैके
4. सिंधु क्षेत्र की शासन व्यवस्था मध्यम वर्गीय जन तंत्रात्मक थी। - व्हीलर
अंततः शासन व्यवस्था उच्चकोटि की थी।
सिंधु सभ्यता का अंत एवं विनाष:-
ऽ जल प्लावन से
ऽ भूकम्प
ऽ संक्रामक रोग से
ऽ जल वायु परिवर्तन से
ऽ बाह्य आक्रमण - इसे मुख्य कारण के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसके प्रवर्तक पी0 गार्डन चाइल्ड हैं। जिन्होने आर्य आक्रमण को इस सभ्यता विनाष का कारक माना है।एम0 व्हीलर ने ऋग्वेद व पुरावषेषों के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि की है।
अन्य विविध तथ्य:-
सिंधु सभ्यता से प्राप्त इ्र्रंटों का अनुपात उंःचै0ःलं0 में 1ः2ः4 था।
सार्वजनिक वृहद स्नानागार में छः प्रवेष द्वार हैं।
उंट तथा घोड़े की न तो हड्डी मिली है और ना ही कोई चित्र प्राप्त हुआ है।
सुरकोत्ड़ा नामक स्थान से घोड़े के प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जो कि संभवतः अवनति कालीन साक्ष्य हैं।
सिंधु वासियों को पांच धातुओं - सोना, चांदी, तांबा, सीसा और रांगा का ज्ञान था।
सिंधुवासी लोहे से अपरिचित थे। अतरंजीखेड़ा से अवष्य ही लोहे के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
इस सभ्यता की प्राप्त मूर्तियों में से बैठे हुए पुरूष की मूर्ति सर्वोत्तम है।
पाषाण मूर्ति हड़प्पा से तथा कांस्य प्रतिमा मोहन जोदड़ो से प्राप्त हुई है।
यह सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता मानी जाती है।
औजार ताम्र व कांस्य निर्मित थे। पाषाण भी प्रयुक्त होता था।
शव का पैर दक्षिण दिषा की ओर रख कर दफन करते थे। // यह विषेषता अन्य समकालीन सभ्यताओं से पृथक थी//
सिंधु वासियों में परलोक तथा पुर्नजन्म की भावना थी।
सर्वाधिक मुहरें हड़प्पा से प्राप्त हुई हैं। कुल प्राप्त 2000 से अधिक मुहरों में 891 से अधिक मुहरें यहां से प्राप्त हुईं हैं।
सिंधु वासियों को चिकित्सा संबंधी ज्ञान था इसका ज्ञान लोथल नामक स्थान से प्राप्त होता है।
हड़प्पा से नीले रंग का साक्ष्य अप्राप्य है।
महान अन्नागार हड़प्पा से प्राप्त हुआ है।
महान स्नानागार मोहन जोदड़ो से प्राप्त हुआ है।
जहाजरानी की कला का श्रीगणेष सिंधु में ही हुआ।
गन्ना तथा दालों की जानकारी सिंधु वासियों को नहीं था।
हड़प्पा का उल्लेख ऋग्वेद में हरि यूपिया नाम से हुआ है।
महाराष्ट में चिन्हित पुरास्थल दैनाबाद के प्रति संदेह है कि इसका संबंध सिंधु सभ्यता से है या नहीं।
सिंधु लिपि को बांए से दांए पढ़ने और उसे तमिल भाषा में परिवर्तित करने का दावा करने वाले विद्वान रैवरेण्ड हैरास थे।
वर्तमान भारतीय जीवन जो सिंधु सभ्यता से प्रेरणा ले रहा है - धर्म
सिंधु व सुमेरियन सभ्यता में समान है - अन्न भण्डारण प्रणाली
कालीबंगा में पकी ईंटों से केवल नाली तथा कुंए बने थे।
सन् 1856 में चाल्र्स मैसन ने सर्वप्रथम इस स्थान को प्रकाष में लाए।
चांदी का प्राचीनतम साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति से ही प्राप्त हुए हैं।
हड़प्पा सभ्यता को च्तवजव . भ्पेजवतपब मानने का कारण - लिपि की प्रामाणिकता तय न होना है।
मुहरों पर जहाज के चिन्ह हड़प्पा तथा मोहन जोदड़ों दोनों से प्राप्त हुए हैं।
योग दर्षन के क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता का योगदान अविस्मरणीय है।
मुहरों की प्राप्ति से धार्मिक दर्षन की विषेष जानकारी मिलती है।
जाॅन मार्षल के अनुसार सभ्यता के मुख्य निर्माता ‘‘ द्रविड़ ’’ थे। परन्तु कुछ विद्वान मिश्रित जातियों को इसका निर्माता मानते हैं।
बाड़ा /पंजाब/ से प्राप्त सामग्री सभ्यता के अवनति काल को दर्षाती है।
ताम्र निर्मित एक इक्का गाड़ी हड़प्पा से प्राप्त हुई है।
धौलावीरा नवीनतम पुरास्थल है जिसके उत्खनन का कार्य आर0एस0विष्ट के द्वारा कराया है।सन् 1967-68 एवं सन्1990 में।
लोथल के अलावा गोदी प्राप्ति के साक्ष्य कुंतासी / बोबी-बू-टिम्बू/ से प्राप्त हुए हैं।
-हड़प्पा सभ्यता को प्रकाष में लाने वाले प्रमुख पुरातात्विकविद् निम्न लिखित है:-
1. चाल्र्स मैसन - सन् 1826 में सव्रप्रथम हड़प्पा से ईंटे प्राप्त कीं।
2. कर्नल बन्र्स - सन् 1831 में राजा रणजीत सिंह से भेट यात्रा के दौरान मार्ग में हड़प्पा को देखा।
3. अलेक्जेण्डर कनिंघम - सन् 1853 में हड़प्पा के खण्डहरों का निरीक्षण किया।
4. सर जाॅन मार्षल - सन् 1920 में सभ्यता की जानकारी हेतु प्रयास आरम्भ किए।
5. दयाराम साहनी - सन् 1921 में हड़प्पा नामक स्थान पर सर्वप्रथम खुदाई कार्य किया तथा प्राप्त अवषेषों के आधार पर पुरातात्विक नियमानुसार सभ्यता का नाम हड़प्पा की सभ्यता दिया गया।
6. राखल दास बनर्जी - सन् 1922 में सर्वप्रथम मोहन जोदड़ो में खुदाई कार्य कर सभ्यता का विस्तृत ज्ञान दिया।
सिंधु सभ्यता के प्रमुख पुरास्थल और उनकी विषेषताएं:-
स्थान विषेषताएं
1. लोथल - फारस की मुहरें, मकान के दरवाजे मुख्य मार्ग की ओर/अपवाद/, तीन युगल समाधि।
2. चहुनदड़ो - मनके का षिल्प तथा कोई दुर्ग प्राप्त नहीं हुआ।
3. रंगपुर -
4. हल्लूर - तलवार बनाने का कारखाना।
5. ब्लूचिस्तान - तांबा प्राप्ति का वैकल्पिक स्थल।
6. खेतड़ी - राजस्थान स्थित यह स्थल तांबा प्राप्ति का मुख्य स्थल था।
7. आदि चनल्लूर - कब्र में स्वर्ण मुकुट ।
8. कोटदीजी - पत्थर के बाण प्राप्त।
9. अल्लादिनोह - अति लघु पुरास्थल।
10. राना घुण्डई - कोई नदी तट नहीं।
11. बनावली - सड़के समकोण पर नहीं तिरछी काटती हैं।
Also Read - वैदिक सभ्यता व आर्यों का आगमन-